~दीपक अग्रहरी
वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने अपनी ही ईकाई नाडा को आड़े हाथों
लिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार नाडा ने 2021 और 2022 में भारतीय एथलीटों
के जितने टेस्ट करने थे, उससे कहीं कम किये। आरटीआई अधिनियम 2005 के तहत
एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार इन दो वर्षो के
दौरान कुल 5961 डोपिंग टेस्ट हुए जिसमें केवल 114 क्रिकेटरों के ही
सैम्पल लिए गये। इस दौरान रोहित शर्मा के सबसे ज्यादा छह बार डोपिंग
टेस्ट हुए वहीं ऋषभ पंत, सूर्यकुमार यादव और चेतेश्वर पुजारा के टेस्ट एक
बार ही हो पाए। जब से आईसीसी का वाडा से करार हुआ है, तब से नाडा को
बीसीसीआई भी गम्भीरता से लेने लगा है मगर नाडा का रवैया क्रिकेटरों के
मामले में बहुत ही ढुलमुल रहा है।
इस रिपोर्ट से यह जानकारी भी प्राप्त हुई कि बीसीसीआई के अनुबंधित 25
क्रिकेटरों में से 12 खिलाड़ी टेस्ट के दौरान मौजूद नहीं थे। विराट
कोहली, हार्दिक पांड्या, मोहम्मद शमी, मोहम्मद सिराज, अर्शदीप सिंह, संजू
सैमसन, श्रीकर भरत, श्रेयस अय्यर, दीपक हुड्डा, शार्दुल ठाकुर, उमेश यादव
और वाशिंगटन सुन्दर इन 12 खिलाड़ियों की सूची में शामिल हैं।
इस बीच, इस अवधि के दौरान महिला राष्ट्रीय क्रिकेट टीम की हर खिलाड़ी के
टेस्ट हुए। विशेष रूप से, भारत की कप्तान हरमनप्रीत कौर और उप कप्तान
स्मृति मंधाना ने सबसे अधिक तीन-तीन बार अपने सैम्पल दिए। हालांकि यह
तथ्य वाडा के इस दावे को बल देता है कि नाडा संभावित कानून तोड़ने वालों
को पकड़ने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहा है। इन खुलासों का मतलब है
कि दुनिया में दूसरे सबसे ज्यादा डोपिंग मामलों वाले देश भारत में ऐसे कई
एथलीट हो सकते हैं जो नाडा की लापरवाही से पकड़ में न आए हों।
बढ़ते कार्यभार और व्यस्त कार्यक्रम के कारण अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों
को आराम करने और लगातार मैच फिटनेस हासिल करने के लिए बहुत कम समय मिलता
है। बहुत ज़्यादा प्रतिस्पर्धी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों फार्मेट
और एक लम्बी आईपीएल विंडो का मतलब है कि क्रिकेटरों का लगातार अपनी
फिटनेस को बनाए रखना। ज़ाहिर है कि एक मजबूत डोपिंग रोधी तंत्र का होना
जरूरी है, जिसमें खिलाड़ियों के डोपिंग टेस्ट कभी भी और कहीं भी किए जा
सकें जिससे खेल में समान अवसर और स्वच्छ वातावरण बना रहे।