टीम इंडिया के पूर्व हैड कोच रवि शास्त्री, पूर्व चयनकर्ता संदीप पाटिल
और एमएसके प्रसाद एशिया कप के लिए केएल राहुल और श्रेयस अय्यर को खिलाने
के पक्ष में नहीं हैं। इनका कहना है कि लम्बे समय से अंतरराष्ट्रीय मैच न
खेलना उनके और टीम के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकता है। इसमें कोई दो
राय नहीं कि ये तीनों दिग्गज हैं और इनकी राय भी काफी मायने रखती है। मगर
सवाल यह है कि अगर ये दोनों नहीं तो फिर कौन ?
ईशान किशन, सूर्यकुमार यादव, संजू सैमसन, तिलक वर्मा और यशस्वी जायसवाल
के रूप में टीम इंडिया के पास कुछ विकल्प ज़रूर हैं मगर इन चारों में
सबसे मज़बूत दावा ईशान किशन का है क्योंकि वह अनुभव के साथ-साथ पहले से
अब कहीं ज़्यादा मैच्योर हो चुके हैं। वेस्टइंडीज़ के खिलाफ तीनों वनडे
में शानदार बल्लेबाज़ी से वह न सिर्फ सीरीज़ के बेस्ट खिलाड़ी रहे बल्कि
अपनी कीपिंग में भी उन्होंने काफी सुधार किया है। वह जल्दी विकेट गिरने
पर बड़े शॉट से परहेज करते हुए स्ट्राइक रोटेट करने पर ज़ोर देते हैं और
ज़रूरत पड़ने पर अच्छी खासी स्ट्राइक रेट से बल्लेबाज़ी भी कर सकते हैं।
बांग्लादेश के जिस दौरे में टीम इंडिया वनडे में सिर्फ एक मैच जीती थी,
उसमें ईशान किशन की ताबड़तोड़ डबल सेंचुरी बनाई थी। बैटिंग ऑर्डर को लेकर
उनका लचीला रवैया, बाएं हाथ का बल्लेबाज़ होना और ऋषभ पंत की गैर-मौजूदगी
की काफी हद तक भरपाई करने की क्षमता होना उनके पक्ष में जाता है।
दूसरे दावेदार सूर्यकुमार यादव पर खासकर राहुल द्रविड़ का बहुत भरोसा है।
बेशक वह टी-20 फॉर्मेट में नम्बर वन बल्लेबाज़ हों लेकिन 26 वनडे में
सिर्फ दो ही हाफ सेंचुरी लगा पाए हैं। इस फॉर्मेट में लगातार मौकों के
बावजूद उनकी हालिया असफलता उन पर कई सवाल खड़े करती है। वनडे बेशक टेस्ट
की तुलना में छोटा फॉर्मेट है लेकिन यह इतना छोटा भी नहीं है कि केवल
बड़े शॉट्स पर आप निर्भर हो जाएं। वेस्टइंडीज़ के खिलाफ पहले वनडे में
उन्हें नम्बर तीन पर उतारा गया जहां उन्होंने तीन चौके और एक छक्का लगाया
लेकिन उन्होंने कुल 25 में से 18 डॉट बॉल भी खेलीं। ज़ाहिर है कि वह
लम्बे शॉट्स के लिए जाते हैं। बाकी दोनों वनडे मैचों में उन्होंने नम्बर
छह पर बल्लेबाज़ी की। दूसरे वनडे में उनकी बैटिंग 25वें ओवर में और तीसरे
में 39वें ओवर में आई। उन्हें जहां कम ओवर मिले, वहां उन्होंने अपनी
उपयोगिता दिखाई। मगर दूसरे मैच में वह इसलिए टिककर नहीं खेल पाए क्योंकि
दूसरे छोर पर जडेजा उस समय काफी धीमी बल्लेबाज़ी कर रहे थे। ऐसी स्थिति
तो आगे भी आ सकती है इसलिए बेहतर होगा कि एक तो वह स्ट्राइक रोटेट करने
की आदत डालें और दूसरे ज़रूरत पड़ने पर उन्हें एक रणनीति के तहत
शार्दुल/अक्षर के बाद भी बल्लेबाज़ी के लिए उतारा जा सकता है। साउथ
अफ्रीका लांस क्लूसनर को लेकर 1999 के वर्ल्ड कप में ऐसा प्रयोग कर चुका
है, जो काफी कारगर रहा था।
तिलक वर्मा और यशस्वी जायसवाल बेहद प्रतिभाशाली हैं लेकिन इन्हें वर्ल्ड
कप में खिलाना जोखिम भरा कदम हो सकता है। वैसे भी दोनों अभी तक एक भी
वनडे नहीं खेले हैं। युवा खिलाड़ियों को सबसे बड़े मंच पर बिना तजुर्बे
के उतारने के प्रयोग अभी तक असफल रहे हैं। ऐसे मामलों में मानसिक दृढ़ता
आड़े आती है। अब बचते हैं संजू सैमसन। उनमें भी प्रतिभा की कोई कमी नहीं
है। मगर उनकी भी दिक्कत सूर्य कुमार यादव की तरह बड़े शॉट्स पर केंद्रित
होना है। वह भी स्ट्राइक रोटेट करने पर उतना ध्यान नहीं देते। तीसरे वनडे
में हाफ सेंचुरी के दौरान उनके ऐसे ही बड़े शॉट्स देखने को मिले जबकि
बाकी मौकों पर संजू विकेट फेंकते हुए दिखे।