कभी रवि शास्त्री और विराट कोहली की सफल जुगलबंदी में राहुल द्रविड़ का
भी बड़ा हाथ हुआ करता था। बेशक यह क़ामयाबी बाईलेटरल सीरीज़ तक सीमित थी
लेकिन जबसे द्रविड़ कोच बने हैं, उन्हें एनसीए से या बीसीसीआई के इंडिया
ए के दौरों से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा।
द्रविड़ के एनसीए में रहते इंडिया ए ने साउथ अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया,
न्यूज़ीलैंड और इंग्लैंड के दौरे किए। द्रविड़ तब इंडिया ए कोच हुआ करते
थे। हार्दिक पांड्या और मोहम्मद सीराज पहले दो दौरों की खोज साबित हुए।
इसी तरह इंग्लैंड के दौरे में ऋषभ पंत और हनुमा विहारी ने काफी प्रभावित
किया। ज़ाहिर है कि इंडिया ए के साथ उनके ऐसे दौरे टीम इंडिया के लिए
काफी उपयोगी साबित हुए।
सवाल उठता है कि ये दौरे अब क्यों नहीं होते। आखिर क्यों किसी खिलाड़ी के
रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन के बावजूद उसे सीधे टीम इंडिया में जगह
देने से चयनकर्ता डरते हैं। वजह साफ है कि रणजी ट्रॉफी में आम तौर पर
तेज़ गेंदबाज़ों की रफ्तार औसतन 120 से 130 कि. मी. प्रति घंटे की रहती
है। ऐसे खिलाड़ियों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 145 की रफ्तार का सामना
करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। ऐसी स्थिति में रणजी ट्रॉफी के बाद
इंडिया ए के दौरे खिलाड़ियों के लिए संजीवनी का काम करते हैं। मगर आज
तमाम क्रिकेट बोर्ड ऐसे दौरों को आर्थिक बोझ मानने लगे हैं।
नवदीप सैनी और आवेश खान को इंडिया ए के दौरों से ही शॉर्टलिस्ट किया गया
था मगर अब ऐसे दौरे न होने से इनका टैलंट हाशिए पर चला गया है। ज़रूरी है
कि ऐसे दौरे फिर से बहाल किए जाएं। इसके लिए बीसीसीआई को बेशक दौरे का
पूरा खर्च ही क्यों न वहन करना पड़े। आखिर दुनिया के सबसे अमीर बोर्ड
कहलाने का फायदा भी भारतीय खिलाड़ियों को मिलना चाहिए। यह वक्त है जब
यशस्वी जायसवाल, सरफराज़ खान, सूर्यकुमार यादव, नवदीप सैनी, आवेश खान और
मुकेश कुमार को टेस्ट क्रिकेट के लिए और रिंकू सिंह और जीतेश शर्मा, साई
सुदर्शन, आकाश मंडवाल और प्रभसिमरन सिंह को छोटे फॉर्मेट के लिए इंडिया ए
के दौरे कराए जाएं जिससे द्रविड़ के लिए कई विकल्प मुहैया हो सकें।
अब भारतीय टीम का अगला दौरा वेस्टइंडीज़ का है, जहां दो या तीन युवा
खिलाड़ियों को मौके दिए जाना बेहद ज़रूरी है। डब्ल्यूटीसी के अंतर्गत
साउथ अफ्रीकी दौरे के लिए एक-दो युवा प्रतिभाओं को भी आजमाया जा सकता है
लेकिन ज़रूरी है कि इससे पहले उनका इंडिया ए का दौरा ज़रूर हो।
वैसे भी चयनकर्ताओं ने शिखर धवन और मुरली विजय को भी बहुत योजनाबद्ध
तरीके से किनारे लगाया है। धीरे-धीरे किनारे लगाने का सिलसिला अभी से
शुरू किया जाना चाहिए। अगर रोहित, विराट और पुजारा जैसे टैलंट हमें 23-24
की उम्र में मिल जाते हैं तो टीम इंडिया की यह खोज टीम के लिए मील का
पत्थर साबित हो सकती है। कम से कम इन खिलाड़ियों को फाइनल में रैश शॉट
खेलने की कोई तो सजा मिलनी चाहिए।
कभी द्रविड़ थे शास्त्री-विराट की बड़ी ताक़त, मगर अब नहीं मिल रहा उन्हें वैसा इनपुट
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