रणजी ट्रॉफी: दिल्ली एक बडे़ उलटफेर से बचा, उप्र मुंबई पर पड़ा भारी, फिर चमकी कर्नाटक की गेंदबाजी

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पिछले कुछ दिन टेस्ट फैंस के लिए काफी रोमांचक रहे हैं। वेस्टइंडीज की जीत हो या भारतीय जमीं पर बैजबॉल की पहली फतह, इस दौरान जीत और हार से हटकर यह खास रहा कि टेस्ट क्रिकेट में रोमांच चरम पर था। अंतरराष्ट्रीय मंच से इतर रणजी में भी जबरदस्त और टक्कर के कुछ मुकाबले देखने को मिले।

करन शर्मा ने बचाया

मुंबई और उत्तर प्रदेश के बीच खेला गया मुकाबला उतार-चढ़ाव से भरपूर था। मुंबई ने 195 रनों का टारगेट दिया जिसके जवाब में उत्तर प्रदेश ने लक्ष्य तो हासिल कर लिया लेकिन इस दौरान उसने आठ विकेट भी खो दिए थे। तनुष कोटियन ने मुंबई के लिए दूसरी पारी में पांच विकेट हासिल किए लेकिन करन शर्मा को आउट नहीं कर पाए। करन शर्मा अंतिम तक डटे रहे और उप्र को मैच जिताकर ही वापस लौटे। दूसरी पारी में करन 67 के अलावा आर्यन जुयाल ने भी 76 रनों का योगदान दिया।

दिल्ली को सीजन की पहली जीत

एक और अन्य मुकाबले पर नज़र डाले तो- उत्तराखण्ड और दिल्ली के बीच हुए मैच में उत्तराखण्ड एक बड़ा उलटफेर करने से मात्र आठ रन पीछे रह गया। दिल्ली ने उत्तराखण्ड को 173 रनों का टारगेट दिया था जिसके जवाब में उत्तराखण्ड 165 रन ही बना सकी। उत्तराखण्ड की शुरुआत बेहद खराब रही, जब इस टीम ने 15 रन पर चार विकेट खो दिए थे। इसके बाद स्वपनिल सिंह और आदित्य तरे ने 78 रनों की साझेदारी कर अपनी टीम को वापस पटरी पर लेकर आए। इस साझेदारी के टूटने बाद  अखिल रावत ने 63 रनों की पारी खेली लेकिन वह इस रन चेज में अकेले पड़ गए। दूसरे छोर से आकाश मढवाल और दीपक धापोला ने थोड़ी-थोड़ी देर तक उनका साथ निभाया लेकिन इन दोनों बल्लेबाजों से मात्र तीन रन ही बनें। 165 यानि बस कुछ चंद कदम पहले ही अखिल आउट हो गए और अगले ही ओवर में दीपक के कैच आउट होने से उत्तराखण्ड एक बड़ा उलटफेर करने से चूक गया। दिल्ली के लिए हिमांशु चौहान ने पांच विकेट चटकाए।

कावेरप्पा और विजय की जुगलबंदी

कर्नाटक और त्रिपुरा के बीच हुए मुकाबले में कर्नाटक की बैटिंग तो पूरी तरह से फ्लॉप रहीं लेकिन गेंदबाजों ने कमाल का प्रदर्शन किया। मैच की निर्णायक पारी में 193 रनों का पीछा कर रही त्रिपुरा को कर्नाटक की गेंदबाजी ने 163 पर रोक कर मुकाबला 29 रनों से जीत लिया। त्रिपुरा के लिए यह मैच जीतने का सुनहरा मौका था लेकिन तेज गेंदबाज  विध्वथ कावेरप्पा और विजयकुमार विषक ने कर्नाटक को उलटफेर का शिकार नहीं होने दिया। कावेरप्पा ने चार जबकि विषक ने तीन सफलताएं हासिल की।

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