साउथ अफ्रीका को 55 रन पर समेटने के बाद हम लोग खुश बहुत हुए थे। मगर तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अपनी टीम बाद के छह विकेट बिना कोई रन बनाए गंवा देगी। माना कि केपटाउन पर पहले भी सात मौकों पर टीमें 55 से कम स्कोर पर आउट हुई हैं लेकिन एक सच यह भी है कि इस मैदान पर सेंचुरियन से कम उछाल था। स्विंग, सीम मूवमेंट और उछाल ने दोनों टीमों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दीं। ये उछाल गेंदबाज़ों के अपने बाहुबल का नतीजा था।
सिराज एशिया कप के फाइनल वाले अंदाज़ में दिखाई दिए। मार्करम को उन्होंने कुछ उसी अंदाज़ में आउट किया जैसे कि पहले टेस्ट में किया था। मार्करम ऑफ पर पिच हुई गेंद पर डिफेंसिव पुश खेलते रह गए और गेंद उनके बल्ले का किनारा लेती हुई तीसरी स्लिप में यशस्वी के हाथों में गई जिन्होंने बाईं ओर गोता लगाते हुए उन्हें लपका। अपना आखिरी टेस्ट खेल रहे डीन एलगर और डेविड बेडिंघम को उन्होंने शॉर्ट बॉल पर और मार्को येनसेन और विकेटकीपर बल्लेबाज़ वैरेनी को फुलर लेंग्थ पर चलता किया। इसी साल एशिया कप के फाइनल में उन्होंने 21 रन में छह खिलाड़ियों को आउट किया था। वहां जिस तरह उन्होंने टॉप ऑर्डर को तहस नहस कर दिया था, वही कुछ यहां उन्होंने किया।
हालांकि केपटाउन में सिराज ने बुमराह के साथ दबाव बनाया। बुमराह ने कुछेक यॉर्कर गेंदों पर साउथ अफ्रीका के बल्लेबाज़ों को परेशान किया लेकिन उसके बाद उनकी गेंदबाज़ी में वह पैनापन नहीं दिखा जो सिराज की गेंदबाज़ी में दिखा।
सिराज की यही सबसे बड़ी खूबी है कि वह लेंग्थ में बदलाव करने के अलावा स्विंग और सीम मूवमेंट का इस्तेमाल ज़रूरत के मुताबिक करते हैं। जहां उन्हें एक ही स्पॉट पर गेंदबाज़ी करके सब्र दिखाना होता है, वहां भी वह उसे दिखाते हैं और बीच-बीच में शॉर्ट गेंदों से उन्होंने बल्लेबाज़ों को चौंकाने का काम किया।
पहले ही दिन विकेटों का पतझड़ यही बयान करता है कि मैच में कुछ भी हो सकता है। यहां पहली पारी में 98 रन की बढ़त भी कोई ज़्यादा मायने नहीं रखेगी। वैसे भी केपटाउन की कंडीशंस को साउथ अफ्रीकी खिलाड़ी भारतीय खिलाड़ियों से बेहतर तरीके से समझते हैं। दूसरी पारी में भारतीय गेंदबाज़ों को किसी भी हालत में चौथी पारी के लक्ष्य को 150 से ऊपर नहीं जाने देना चाहिए। कहीं इतना लक्ष्य मिल गया तो यहां कुछ भी हो सकता है।