चोकर का टैग कोई टीम अपने नाम के आगे नहीं लगाना चाहती लेकिन लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बाद नॉकआउट में एक हार सारे किए कराए पर पानी फेर देती है। इसे ही चोक करना कहतै हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि विश्व क्रिकेट की सबसे बड़ी चोकर टीम कौन सी है – इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, न्यूज़ीलैंड या भारत।
टीम इंडिया ने आखिरी बार एमएस धोनी की अगुवाई में चैम्पियंस ट्रॉफी के रूप में आईसीसी खिताब जीता था। मगर तब से लेकर पांच मौकों पर टीम इंडिया आईसीसी टूर्नामेंटों के फाइनल में चोक हो गई। तीन बार इंग्लैंड में और एक-एक बार मीरपुर और अहमदाबाद में। सबसे खराब पक्ष यह रहा कि ये सभी फाइनल एकतरफा रहे। मीरपुर में 2014 में टी 20 वर्ल्ड कप के फाइनल में टीम इंडिया श्रीलंका से छह विकेट से हारी, जहां विराट कोहली अकेले पड़ गए। तब टीम इंडिया 130 रन ही बना पाई थी। तीन साल बाद ओवल में चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में टीम इंडिया पाकिस्तान से 180 रन से हारी जबकि इसी पाकिस्तान टीम को उसने लीग मुक़ाबले में हराया था। इस मैच में फख्र ज़मां ने सेंचुरी बनाई और मोहम्मद आमिर और हसन अली ने तीन-तीन विकेट चटकाए। साउथैम्प्टन में टीम इंडिया वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में न्यूज़ीलैंड से आठ विकेट से हारी। भारत की ओर से इस टेस्ट में एक भी हाफ सेंचुरी नहीं लगी और टीम इंडिया दोनों पारियों में सवा दो सौ रन भी नहीं बना पाई। यही हाल इसी चैम्पियनशिप के अगले पड़ाव में देखने को मिला। इस बार टीम ऑस्ट्रेलिया से 209 रन के बड़े अंतर से हारी। इस बार स्मिथ और ट्रेविस हैड की 285 रन की पार्टनरशिप ने भारत की जीत की सम्भावनाओं को हवा-हवाई कर दिया। इस बार अहमदाबाद में टीम इंडिया इसी ऑस्ट्रेलियाई टीम से छह विकेट से हारी। हैड ने एक बार फिर सेंचुरी लगाकर लैबुशेन के साथ 192 रन की पार्टनरशिप की और भारतीय गेंदबाज़ पहले तीन विकेट लेने के बाद अगले 36 ओवरों तक विकेट नहीं चटका पाए।
इन पांचों मैचों में टीम इंडिया के तेज़ी से विकेट गिरने का सिलसिला चला और भारतीय बल्लेबाज़ रनों के लिए जूझते रहे। दूसरे, विपक्षी टीमों ने कंडीशंस को हमसे बेहतर तरीके से समझा और तीसरे, इन टीमों की मानसिक दृढ़ता भारतीय खिलाड़ियों से ज़्यादा मज़बूत रही, जिससे हमारे खिलाड़ी स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं कर पाए। हर हालत में जीत के दबाव ने टीम पर बुरा असर डाला जबकि अहमदाबाद में ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ज़्यादा सहज थे। यहां तक कि मैच के दौरान उन्हें गुनगुनाते हुए भी देखा गया।
कभी क्रिकेट के जन्मदाता इंग्लैंड की टीम भी नॉकआउट मुक़ाबलों में चोक करने के लिए जानी जाती थी। पहले वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में और फिर दूसरे और चौथे के फाइनल में यह टीम चोक हुई। साउथ अफ्रीकी टीम के साथ तो ऐसी कहानी सबसे ज़्यादा बार लिखी गई। 1992 के वर्ल्ड कप में बारिश ने उसका खेल खराब किया तो अगले आयोजन में ग्रुप बी में टॉप पर रहने के बावजूद यह टीम क्वॉर्टर फाइनल में वेस्टइंडीज़ से मैच ऐसे समय में हार गई जब उसकी मैच में अच्छी स्थिति थी। 1999 के वर्ल्ड कप में मैच टाई रहने के बावजूद लीग के प्रदर्शन के नियम की वजह से उसे बाहर होना पड़ा। 2003 के वर्ल्ड कप में बाउचर रनों की सही गणना का अंदाज़ नहीं लगा पाए। उन्होंने छक्का लगाकर डकवर्थ लुइस में स्कोर बराबर किया लेकिन अगली गेंद पर वह एक रन नहीं बना पाए। 2015 के वर्ल्ड कप में साउथ अफ्रीकी मूल के इलियट ने अंतिम पूर्व गेंद पर छक्का लगाकर न्यूज़ीलैंड को जीत दिलाई। इसी टीम ने भारत को 2011 के वर्ल्ड कप के लीग मैच में भी हराया।
वहीं न्यूज़ीलैंड की टीम 2015 और 2019 के वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंचकर भी नहीं जीत पाई। इनमें दूसरे मौके पर इंग्लैंड की तुलना में कम बाउंड्री लगाने के आधार पर उसे हार का सामना करना पड़ा। उम्मीद करनी चाहिए कि टीम इंडिया जल्द ही इस तरह से चोक करने की प्रवृति से उबरेगी।