– Manoj Joshi 7th June :
क्रिकेट की बाइबिल कही जाने वाली पत्रिका विज़डन में एक लेख छपा है – द पिच डिबेट, इसके लेखक एंडी बुल ने लिखा है कि इस बार इंग्लैंड की टीम एजबेस्टन टेस्ट के लिए ऐसी पिच तैयार कर रही है जो इंग्लैंड की स्ट्रैंथ से पूरी तरह मेल खाये। यानी वह इस लेख में कहना यह चाह रहे हैं कि इस पिच पर स्पिनरों के लिए कुछ नहीं होगा।
एंडी बुल ने अपने लेख में भारतीय पिचों पर स्पिनरों को मिली मदद के बारे में लिखा है कि जून 2017 से अब तक भारतीय पिचों पर 194 विकेट स्पिनरों को हासिल हुए जबकि तेज़ गेंदबाज़ों को सिर्फ 115 विकेट ही मिल पाये। स्पिनरों में रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा और अक्षर पटेल को ही क़ामयाबी मिली। इनमें अश्विन को 18.20 के औसत से 104 विकेट हासिल हुए। वहीं जो 115 विकेट तेज़ गेंदबाज़ों को हासिल हुए, उन्हें उमेश यादव, मोहम्मद शमी और ईशांत शर्मा ने झटका। जसप्रीत बुमराह ने भारतीय पिचों पर काफी कम गेंदबाज़ी की है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हर टीम अपनी ताक़त के अनुसार ही टीम तैयार करती है। क्या ऑस्ट्रेलिया में भारत को तेज़ और उछाल भरी पिचें नहीं मिलती। इंग्लैंड में सीम और स्विंग की मददगार पिचें मेजबान टीम को ही फायदा पहुंचाती हैं। न्यूज़ीलैंड के छोटे मैदानों पर भी तेज़ हवाओं का वहां के तेज़ गेंदबाज़ भरपूर फायदा उठाते हैं। जेम्स एंडरसन को जितनी क़ामयाबी इंग्लैंड की पिचों पर मिली है, उतनी विदेशी ज़मीं पर नहीं मिली। तभी तो वह लॉर्ड्स के मैदान पर कभी भारत के खिलाफ नौ विकेट चटकाते हैं तो कभी वेस्टइंडीज़ के खिलाफ इतने ही विकेट चटकाकर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। नॉटिंघम में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ वह नौ विकेट और इसी मैदान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दस विकेट अपने नाम करते हैं। लीड्स टेस्ट में श्रीलंका के खिलाफ उनका दस विकेट झटकना यही साबित करता है कि वह अपनी कंडीशंस का भूरपूर फायदा उठाते हैं। यही हाल स्टुअर्ट ब्रॉड का है।
मैनचेस्टर में दो साल पहले वेस्टइंडीज़ के खिलाफ उन्होंने दस विकेट चटकाये जबकि कई साल पहले लॉर्ड्स टेस्ट में इसी वेस्टइंडीज़ के खिलाफ उन्होंने 12 विकेट चटकाकर अपनी टीम की जीत में अहम भूमिका निभाई।
एंडी बुल के सूत्रों के अनुसार एजबेस्टन पर इस बार तेज़ गेंदबाज़ों की मददगार पिच तैयार करने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। शायद ईसीबी इस तथ्य को भूल गई है कि पिछले वर्षों में भारत को विदेशों में रिकॉर्डतोड़ क़ामयाबी तेज़ गेंदबाज़ों ने ही दिलाई है। कहीं ऐसा न हो कि दूसरों के लिए गड्ढा खोदने का अंजाम कहीं ऐसा न हो कि इंग्लैंड ही उस गड्ढे में गिर जाए।