घट रहा है ऑफ स्पिनरों पर सभी टीमों का भरोसा, भारतीय स्पिन तिकड़ी करेगी इसकी भरपाई

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इरापल्ली प्रसन्ना और वेंकटराघवन से लेकर हरभजन सिंह और रविचंद्रन अश्विन
तक भारत में कई आला दर्जे के ऑफ स्पिनर हुए हैं जो समय-समय पर भारतीय टीम
के लिए निर्णायक साबित हुए। बीच में शिवलाल यादव और राजेश चौहान ने भी
बतौर ऑफ स्पिनर अपनी मौजूदगी का अहसास कराया। इसी तरह विश्व क्रिकेट में
जिम लेकर, सोमी रामदीन, ह्यूज टेफील्ड, मुथैया मुरलीधरन, नाथन लॉयन,
सकलैन मुश्ताक और सईद अजमल ने अपनी उंगलियों के करिश्मे से ऑफ स्पिन का
जादू बिखेर दिया।
मगर आज ऑफ स्पिन की कला विश्व क्रिकेट में हल्की पड़ने लगी है। आलम यह है
कि रविचंद्रन अश्विन और वाशिंग्टन सुंदर की मौजूदगी के बावजूद ये खिलाड़ी
वर्ल्ड कप में टीम का हिस्सा नहीं बन पाए। न ही पिछले वर्ल्ड कप का
हिस्सा बन पाए थे। सच तो यह है कि हरभजन और अश्विन के आने के बाद ही भारत
की वर्ल्ड कप में इन पर निर्भरता बढ़ी है। 1987 और 1992 के वर्ल्ड कप में
टीम इंडिया में एक भी ऑफ स्पिनर नहीं था। पहले मौके पर रवि शास्त्री और
मनिंदर सिंह के रूप में टीम में दो बाएं हाथ के स्पिनर थे तो इससे अगले
आयोजन में मनिंदर की जगह एक अन्य लेफ्ट आर्म स्पिनर वेंकटपति राजू ने ले
ली। 1983 में ऑफ स्पिनर के रूप में कीर्ति आज़ाद के रूप में पार्ट टाइमर
से हमने काम चलाया। 1996 में हमने आशीष कपूर और 1999 में निखिल चोपड़ा से
हमने काम चलाया।
वैसे आज वर्ल्ड कप की चुनी अन्य टीमों में भी स्थिति इससे कुछ अलग नहीं
है। ऑस्ट्रेलिया के पास नाथन लॉयन जैसा शानदार ऑफ स्पिनर है लेकिन उनका
इस्तेमाल वे वर्ल्ड कप में नहीं करते। इंग्लैंड के पास मोइन अली हैं
जिनकी बल्लेबाज़ी पर गेंदबाज़ी से ज़्यादा भरोसा किया जाता है। पाकिस्तान
अपने पार्ट टाइमर इफ्तिखार और आगा सलमान से ही काम चला रही है। साउथ
अफ्रीकी टीम में कोई ऑफ स्पिनर नहीं है। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि
क्या ऑफ स्पिनर की प्रासंगिकता आज खत्म हो गई है। आखिर क्यों ऑफ स्पिनर
की बल्लेबाज़ी को ही तवज्जोह दिया जाता है। पाकिस्तान के ऑफ स्पिनर तौसीफ
अहमद कहते हैं कि टी-20 क्रिकेट की अधिकता से ऑफ स्पिनर का महत्व कम हुआ
है जबकि उनका मानना है कि ऑफ स्पिनर आज भी असरदार साबित हो सकता है।
दरअसल ऑफ स्पिनर के पास लेग स्पिनर की तुलना में कम विविधता होती है।
उसकी `दूसरा` गेंद असरदार होती थी लेकिन वह नियमों में उलझकर रह गई। यही
वजह है कि भारत अश्विन और ऑस्ट्रेलिया नाथन लॉयन जैसे आला दर्जे के ऑफ
स्पिनर के होते हुए भी इन्हें वर्ल्ड कप टीम में नहीं रखता। बाकी
मुरलीधरन, सईद अजमल, हरभजन सिंह और सुनील नरेन के बॉलिंग एक्शन पर एक समय
विवाद छिड़ गया था। सच तो यह है कि सीमित ओवर के क्रिकेट में ऑफ स्पिनर
रन रोकने वाले गेंदबाज़ बनकर रह गए हैं। उनमें लेग स्पिनर या लेफ्ट आर्म
चाइनामैन की तरह विकेट चटकाने की क्षमता उतनी नहीं रहती।
बेशक क्रिकेट में लेफ्ट आर्म ऑफ स्पिन की कोई टर्म नहीं है लेकिन जडेजा
ऐसे ही बॉलर हैं। उनकी दाएं हाथ के बल्लेबाज़ से टर्न होकर दूर जाती
गेंदें काफी असरदार रहती हैं। इसी तरह कुलदीप यादव की गेंदें दोनों ओर
टर्न होती हैं। इस लिहाज से जडेजा और कुलदीप इस वर्ल्ड कप में एक ऑफ
स्पिनर की भी भरपाई करते देखे जा सकते हैं।
कभी ऑफ स्पिनर वेंकटराघवन की सबसे खतरनाक गेंद स्ट्रेटर-वन होती थीं। यही
खूबी आज अक्षर पटेल में है। इसी तरह प्रसन्ना को फ्लाइट और लूप पर क़ाफी
कामयाबी मिली। कुलदीप यादव ऐसी ही गेंदों का बीच-बीच में फायदा उठाने के
लिए तैयार हैं। भज्जी लेंग्थ से विचलित करने वाली उछाल करते थे। अक्षर
अपनी लम्बाई का फायदा उठाकर इसी उछाल से परेशान कर सकते हैं। यानी कुल
जमा मतलब यह कि ऑफ स्पिनर की कमी की भरपाई इस बार बाएं हाथ की स्पिन
तिकड़ी करती दिखाई देगी।

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