रोहित शर्मा ने केपटाउन टेस्ट जीतने के बाद बहुत ही वाजिब सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि अगर पिच पर स्विंग को मदद मिले तो ठीक है, अगर पिच पर स्पिनर को मदद मिले तो वह ग़लत है। उन्होंने आईसीसी पर सवाल उठाया। केपटाउन की पिच वास्तव में खतरनाक थी, जहां न सिर्फ पहले दिन 23 विकेट गिरे बल्कि 153 के स्कोर पर छह भारतीय खिलाड़ियों का आउट होना भी बहुत कुछ बयान करने के लिए काफी है। नतीजतन, यह टेस्ट अब तक के इतिहास का सबसे छोटा टेस्ट साबित हुआ।
पांच दिन का मैच अगर करीब डेढ़ दिन में खत्म हो रहा है तो ऐसी पिच को औसत दर्ज की नहीं बल्कि खराब दर्जे की रेटिंग मिलनी चाहिए। इस पिच पर अच्छा खासा उछाल था। वैसे सेंचुरियन की पिच भी आदर्श पिच की श्रेणी में नहीं आती। वहां भी काफी उछाल था। यहां आईसीसी की दोहरे मापदंड सामने आते हैं, जिस पर रोहित शर्मा ने सवाल उठाया है। हाल में वर्ल्ड कप क्रिकेट में आईसीसी को न तो भारत-पाकिस्तान की अहमदाबाद की पिच रास आई और न ही भारत-ऑस्ट्रेलिया की चेन्नई की पिच ही रास आई। हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन, धर्मशाला की आउटफील्ड को भी खतरनाक करार दिया गया। गनीमत है कि लखनऊ के इकाना स्टेडियम की पिच पर आईसीसी ने कोई सवाल नहीं उठाया। इसी पिच को न्यूज़ीलैंड के खिलाफ मैच में औसत से भी नीचे दर्जे की पिच करार दिया गया था।
नरेंद्र मोदी स्टेडियम, अहमदाबाद की जिस पिच पर सवाल उठाया गया, उसी पिच पर ट्रेविस हैड ने सेंचुरी बनाई। पिच पर गेंदबाज़ों और बल्लेबाज़ों को समान रूप से मदद थी, जो सपार्टिंग विकेट की श्रेणी में आनी चाहिए थी। कायदे से तो आदर्श पिच वह है जहां तेज़ गेंदबाज़ों के अलावा स्पिनरों को भी मदद मिलनी चाहिए। सेना देशों में कितने ऐसे मैदान हैं जहां स्पिनरों को पिच से मदद मिलती है। फिर ऐसी पिचों को सपोर्टिंग पिच क्यों कहा जाए। वहां आईसीसी क्यों मूक दर्शक बनकर तमाशा देखती रहती है। कुछ समय पहले इंदौर की पिच के बहुत ज़्यादा स्पिन होने से उसकी रेटिंग भी खराब दी गई। ज़ाहिर है कि आईसीसी को इन दोहरे मानदंडों से निजात पानी चाहिए।
रोहित शर्मा ने ठीक ही कहा है कि देश को देखकर पिचों की रेटिंग तय होने का सिलसिला बंद होना चाहिए। अब हर किसी को केपटाउन पिच पर आईसीसी के फैसले का इंतज़ार है। इस टेस्ट में यह बात साबित हो गई कि भारत का पेस अटैक साउथ अफ्रीका के पेस अटैक से बेहतर था। पहली पारी में सिराज के छह विकेट और दूसरी पारी में बुमराह के छह विकेट और बाकी का काम मुकेश कुमार की गेंदबाज़ी ने कर दिया। मैच के बाद भारतीय प्रशंसकों की एक ही टिप्पणी थी कि काश यह सीरीज़ तीन मैचों की होती। सिडनी की पिच पर जिस तरह से तेज़ गेंदबाज़ी असर दिखा रही है, वहां भी स्पिनरों के लिए ज़्यादा स्कोप नहीं है। यह पिच केपटाउन जैसी तो नहीं, लेकिन उससे बहुत अच्छी भी नहीं है, जहां ऑस्ट्रेलिया-पाकिस्तान टेस्ट के तीसरे दिन 15 विकेट गिरे। पिचों का बदलता मिजाज़ खासकर बाइलेटर सीरीज़ में देखने को मिल रहा है, जहां मेजबान अपनी स्ट्रैंथ के अनुकूल पिच बनाने को कुछ ज़्यादा ही तरजीह देने लगे हैं।
पिच तो एक बात हो गई लेकिन इसके साथ ही भारतीय बल्लेबाज़ों के खराब शॉट सेलेक्शन को भी ज्यादा रन न बनाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। उम्मीद है कि अब इंग्लैंड के खिलाफ होने वाली अगली टेस्ट सीरीज़ में भारतीय बल्लेबाज़ इस कमज़ोरी से सबक सीखेंगे।