बेन स्टोक्स- मैक्कुलम जुगलबंदी पर भारी पड़ता भारत का युवा ब्रिगेड

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बहुत गुमान था, बैज़बॉल पर, टीम इंडिया के टीम वर्क ने निकाल दी हवा

 

पहला मैच हारने के बाद सीरीज़ अपने नाम करना अपने आप में बड़ी बात है और जब अपने घर में लगातार 17वीं टेस्ट सीरीज़ जीतने की बात सामने आए तो उसका मज़ा कई गुना बढ़ जाता है। यहां यह भी गौरतलब है कि ब्रेंडन मैकुलम और बेन स्टोक्स की जुगलबंदी जो बैज़बॉल का पर्याय बन गई थी, उसे पहली बार सीरीज़ हारने के लिए मजबूर होना पड़ा। टीम इंडिया ने दिखा दिया कि गिल और ध्रुव जुरेल के रूप में टीम इंडिया की युवा ब्रिगेड चौथी पारी में रनों का पीछा करके भी मैच जीतने का माद्दा रखती है।

टीम इंडिया के प्रदर्शन में सुधार होता ही चला गया। हैदराबाद में पहला टेस्ट हारे तो लगा कि कहीं 2012 न दोहराया जाए लेकिन वाइज़ैक में कुछ खिलाड़ियों के वैयक्तिक प्रदर्शन से टीम इंडिया जीती तो जान में जान आई लेकिन राजकोट में टीम वर्क से टीम इंडिया जीती और अब रांची में इस जीत को सुपर टीमवर्क कहना ज़्यादा ठीक होगा क्योंकि जहां पहली पारी में तेज़ गेंदबाज़ों ने भी अपने काम को बखूबी अंजाम दिया तो वहीं स्पिनरों ने भी मैच में 15 विकेट चटकाए। बाकी का काम रोहित, गिल, जुरेल और यशस्वी (पहली पारी) की बल्लेबाज़ी ने कर दिया।

ध्रुव जुरेल ने अपनी शानदार तकनीक को उजागर किया। उनका गेंद को रिलीज़ करना हो, फुटवर्क हो, शरीर से नज़दीक खेलना हो या फिर ज़रूरत पड़ने पर कदमों का इस्तेमाल करना हो, इन सबमें वह परफैक्ट साबित हुए। वैसे आम तौर पर वह बैकफुट पर खेलना पसंद करते हैं। उनकी यह तकनीक ऑस्ट्रेलिया में और भी ज़्यादा कारगर साबित हो सकती है। आगरा से नोएडा और फिर बैंगलुरू से होते हुए यह खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट और इंडिया ए के सभी इम्तिहान पास करते हुए अब टीम इंडिया में भी मैन ऑफ द मैच रहा और दोनों पारियों में विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने शानदार बल्लेबाज़ी करके सबका दिल जीत लिया। साथ ही गिल ने भी दिखाया कि स्ट्राइक रोटेट करके और बाउंड्रियों पर निर्भर हुए बिना भी मैच जीता जा सकता है। यानी कंडीशंस के अनुकूल बल्लेबाज़ी करना आज के युवा ब्रिगेड की सबसे बड़ी विशेषता है।

यह स्थिति तब है जबकि टीम इंडिया में न विराट और बुमराह हैं और न ही केएल राहुल और श्रेयस अय्यर ही हैं। पुजारा और रहाणे तो अब इन युवाओं की कामयाबी को देखते हुए बीते ज़माने के खिलाड़ी लगने लगे हैं। भारतीय युवा ब्रिगेड को मुश्किल हालात से निकलना आता है। साथ ही जब उन्हें लगता है कि बड़ा शॉट खेलना आसान नहीं है तो अपने बढ़ते कदमों पर लगाम लगाना भी आता है। हमारे तीनों स्पिनरों ने जीत का आधार तैयार किया और पहली पारी से पिछड़ने की भी भरपाई बखूबी की। अश्विन ने दिखाया कि उनकी गेंदबाज़ी की धार अभी बरकरार है। जडेजा हमेशा की तरह खतरनाक हैं और कुलदीप का गति परिवर्तन और टर्न होती फ्लाइटेड गेंदे असरदार रही।

इस सुपर टीम वर्क प्रदर्शन से लगने लगा है कि टीम इंडिया 2018 के इंग्लैंड दौरे की 1-4 की उस हार का हिसाब धर्मशाला में ज़रूर चुकाएगी।

 

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