भारतीय पेस बैटरी और 70 और 80 के दशक की वेस्टइंडीज़ की पेस बैटरी से कितनी अलग है ?

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बांग्लादेश के श्रीलंका मूल के कोच चंद्रिका हथुरासिंघे ने भारतीय तेज़ गेंदबाज़ों की त्रिमूर्ति की तुलना 70 के दशक और 80 के दशक के शुरुआत की वेस्टइंडीज़ की त्रिमूर्ति से की है। वहीं उस पेस बैट्री के सदस्य माइकल होल्डिंग ने भी कहा है कि मौजूदा भारतीय पेस अटैक इस समय दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। हम लोग रन अप, स्पीड और शॉर्टपिच गेंदों पर ज़ोर दिया करते थे लेकिन भारतीय पेस बैट्री में ज़्यादा वैरायिटी है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि वेस्टइंडीज़ के एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, जोएल गार्नर और माल्कम मार्शल और कुछ समय के लिए कोलिन क्राफ्ट की गेंदबाज़ी का उस समय जलवा हुआ करता था। एंडी रॉबर्ट्स स्लोअर बाउंसर और तेज़ रफ्तार की बाउंसर के लिए जाने जाते थे। इनमें उनकी पहली खूबी जसप्रीत बुमराह में भी है। फर्क यह है कि एंडी रॉबर्ट्स की तेज़ रफ्तार की बाउंसर असरदार होती थीं लेकिन बुमराह की स्लोअर बाउंसर ज़्यादा असरदार होती हैं। रॉबर्ट्स एंटीगा से टेस्ट खेलने वाले पहले क्रिकेटर थे। उनके बाद विवियन रिचर्ड्स, रिची रिचर्ड्सन और कर्टली एम्ब्रोस भी यहां से आकर टेस्ट खेले। 1975 के चेन्नै टेस्ट में भारत के खिलाफ 12 विकेट, किंग्सटन टेस्ट में नौ विकेट और ब्रिजटाउन टेस्ट में आठ विकेट हासिल करके उन्होंने अपनी गेंदबाज़ी का लोहा मनवा लिया था।

छह फुट चार इंच ऊंचे माइकल होल्डिंग का एक्शन बेहद सहज था। मोहम्मद शमी भी इसी सहज एक्शन के लिए जाने जाते हैं लेकिन कोलिन क्राफ्ट की तरह शमी और सिराज क्रीज़ के कोने का बहुत अच्छा इस्तेमाल करते हैं जिस पर उन्हें स्वभाविक रूप से कोण मिलता है। इसके अलावा जसप्रीत बुमराह में जोएल गार्नर की तरह यॉर्कर और स्विंग है। बुमराह की सबसे बड़ी खूबी यह है कि गेंद के रिलीज़ पॉइंट पर उनकी गेंदों को बहुत कम बल्लेबाज़ पढ़ पाते हैं। यही वजह है कि शुरुआती ओवरों में दुनिया का करीब-करीब हर बल्लेबाज़ उन्हें बेहद सावधानी के साथ खेलता है।

गार्नर छह फुट आठ इंच ऊंची कदकाठी के गेंदबाज़ थे। उन्हें वनडे क्रिकेट का ऑलटाइम हाइएस्ट रैंक्ड खिलाड़ी कहा जाता है। जब इतनी ऊंचाई से तेज़ रफ्तार से वह दौड़कर गेंदबाज़ी करते थे, तब उनके सामने पांच फुट पांच इंच के सुनील गावसकर और पांच फुट तीन इंच के गुंडप्पा विश्वनाथ उन्हें गेंद की मेरिट से खेलते थे। वैसा दृश्य आज विश्व क्रिकेट में आपको शायद ही देखने को मिले।

हमारे तीनों तेज़ गेंदबाज़ विकेट के लिए लगातार अटैक करते हैं और बाउंसर का इस्तेमाल बीच-बीच में करते हैं जिसमें उनकी कोशिश बल्लेबाज़ को ग़लती के लिए मजबूर करना होती है। मगर वेस्टइंडीज़ के ये चारों तेज़ गेंदबाज़ विपक्षी बल्लेबाज़ों के शरीर पर निशाना साधकर गेंदबाज़ी किया करते थे। 1976 में जमैका के सबाइना पार्क पर तत्कालीन कप्तान बिशन सिंह बेदी ने अपनी टीम के दूसरी पारी में पांच विकेट गिरते ही पारी समाप्त घोषित इसलिए कर दी थी क्योंकि टीम के कई खिलाड़ी वेस्टइंडीज़ की पेस बैट्री के सामने इंजर्ड हो गए थे। कम से कम भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी इससे सोच से बिल्कुल अलग है।

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