कहते हैं कि खेल एक दूसरे को आपस में जोड़ता है और आपसी भाईचारे का संदेश देता है। दिखावे के तौर पर चीन भी इस बात को मानता है लेकिन इसे अमल में नहीं लाता। वह हांगझाऊ में एशियाई खेलों का आयोजन कर रहा है जिसकी ओपनिंग सेरेमनी में आपसी भाईचारे की बड़ी बड़ी बातों का बखान भी किया गया लेकिन असल में उसका असली चेहरा इससे एकदम अलग है। वह इन खेलों के ज़रिए नफरती सियासत का खेल खेलने लगा है और अरुणाचल प्रदेश के वूशू खिलाड़ियों को वीज़ा जारी न करके उसने दिखा दिया है कि उसकी कथनी और करनी में कितना बड़ा फर्क है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ। 13 साल पहले उसने एशियाई कराटे चैम्पियनशिप में तीन खिलाड़ियों और दो अधिकारियों को इसलिए वीज़ा नहीं दिया था क्योंकि वे अरुणाचल से थे। उसी साल चीन में आयोजित ग्रां प्री वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में उसने नत्थी वीज़ा का नया शगूफा छोड़ दिया। नत्थी वीज़ा में इमिग्रेशन अधिकारी पासपोर्ट पर स्टम्प नहीं लगाता। बल्कि अलग से एक पर्ची को स्टेपल (नत्थी) करता है। बाद में इस पर्ची को फाड़ दिया जाता है। यानी उस स्तर पर इस बात का कोई सबूत नहीं रहता कि संबंधित व्यक्ति ने चीन की यात्रा की है। भारत सरकार कभी भी नत्थी वीज़ा के पक्ष में नहीं रही।
इसी तरह 2016 में चाइना ओपन बैडमिंटन में भारतीय टीम के मैनेजर बामंग टागो को उनके अरुणाचल प्रदेश के होने की वजह से वीज़ा नहीं दिया गया। वर्ल्ड यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप में भारतीय दल के दो खिलाड़ियों का वीज़ा रोक दिया गया। इस साल वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में भी वूशू खिलाड़ियों के साथ ऐसा ही कृत्य किया गया। आखिरकार चीन की इन हरकतों पर अभी तक लगाम क्यों नहीं लग पाया। आखिर क्यों उसकी ओर से नफरती सियासत की घटनाएं बार-बार हो रही हैं। हालांकि इस बार खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने अपने प्रस्तावित चीन दौरे को इसी घटना के चलते रद्द कर दिया।
भारत सरकार का यह कदम स्वागतयोग्य है। चीन के कदम की मुखाल्फत की शुरुआत हो चुकी है। क्या भारत वूशू के खेल से अलग हटकर उसे बड़ा संदेश भी देगा। इस बात से पर्दा रविवार को उठेगा क्योंकि इसी दिन वूशू की इवेंट शुरू हो रही है। चीन को तो इस बात के लिए खुश होना चाहिए था कि उसके परम्परागत खेल वूशू में भारत दिलचस्पी ले रहा है और उसे अतीत में कई पदक इस खेल में मिल चुके हैं और उसका खेल भारत में भी अच्छा खासा लोकप्रिय हो रहा है।
एशियाई वूशू से लेकर अंतरराष्ट्रीय वूशू फेडरेशन और आयोजन समिति तक कोई इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हो रहा कि चीन ने भारतीय दल में अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों के वीज़ा को रोक दिया है। और तो और ओलिम्पिक काउंसिल ऑफ एशिया (ओसीए) की एथिक्स कमिटी के अध्यक्ष वेई जिझोंग ने तो यहां तक कह दिया कि सभी भारतीय खिलाड़ियों को वीज़ा दिया गया था लेकिन उन्होंने वीज़ा लेने से मना कर दिया। यह हालत तब है जबकि ओसीए के कार्यकारी अध्यक्ष रंधीर सिंह जाने माने भारतीय प्रशासक रहे हैं जो लम्बे समय तक भारतीय ओलिम्पिक संघ के महासचिव और ओसीए के वर्षों से सक्रिय अधिकारी रहे हैं। जब उनकी बात को ही आयोजन समिति नहीं मान रही तो फिर इस पूरे मामले का उलझना लाजमी है।
राजनीतिक तौर पर चीन का भारत के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अरूणाचल यात्रा का चीन ने विरोध किया था। आखिर कब तक हम चीन के इस व्यवहार को नज़रअंदाज़ करते रहेंगे। इंतेहा तो तब हो गई जब इस साल गृहमंत्री अमित शाह की अरुणाचल यात्रा का उसने विरोध कर दिया। यहां तक कि अपने मानचित्र में अरुणाचल के 11 जगहों के नाम तक बदल दिए। यह सब इसलिए क्योंकि चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा मानता है। अगर इस ग़लतफहमी में जीने की उसे आदत पड़ गई है तो उसे इसका जवाब देने का यह सही वक्त है। वैसे भी जी-20 से लेकर हाल के तमाम घटनाक्रमों में चीन अलग-थलग पड़ता दिखाई देने लगा है। उसकी बौखलाहट अरुणाचल के मामले में अगर बार-बार दिखाई देने लगी है तो भारत को अपने वूशू दल को वापिस बुला लेना चाहिए या फिर आईओसी की होने वाली अगली बैठक में चीन के इस कृत्य की कड़े शब्दों में भर्त्सना करनी चाहिए।
वर्ल्ड शूटिंग चैम्पियनशिप में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को वीज़ा दिए जाने में जब भारत से देरी हुई तो अंतरराष्ट्रीय शूटिंग महासंघ ने अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक समिति के निर्देश पर भारत को निलम्बित करने की चेतावनी तक दे दी। अब सब चुप क्यों हैं। माना कि एशियाई वूशू और अंतरराष्ट्रीय वूशू महासंघ में चीनी अधिकारियों का दबदबा है लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलिम्पिक कमिटी को चाहिए कि वह ओलिम्पिक काउंसिल ऑफ एशिया को स्पष्ट निर्देश दे कि किसी देश के कुछ खिलाड़ियों को नत्थी वीज़ा जारी करना भेदभाव है, जिसे ओलिम्पिक चार्टर मान्यता नहीं देता।