मीनू कालीरमन
मैंने पिछले दिनों दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट फतह की। हालांकि आप कह सकते हैं कि इसमें क्या बड़ी बात है। पहले भी बहुत लोग एवरेस्ट पर जा चुके हैं तो मैं यहां स्पष्ट कर दूं कि एवरेस्ट फतह करने के बाद मैं वापिस एक पॉइंट पर आई और वहां से मैंने दुनिया की चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट लोहत्से को भी फतह किया। यह बेहद मुश्किल रास्ता है। मुझे खुशी है कि मै केवल 60 घंटे में इसे पूरा करने वाली देश की एकमात्र बेटी बन गई हूं।
हमारे हरियाणा में अक्सर देखा गया है कि माता-पिता की रोक-टोक के अलावा गांव देहात के लोग भी बहुत कुछ कह देते हैं। सब यही बोलते हैं कि लड़की ने कौन सा पहाड़ तोड़ दिया।
हम शॉर्ट्स पहनकर खेलते हैं तो वह भी किसी को पसंद नहीं। तब कहते हैं कि म्हारी छोरी ने ये के पहन लिया। यहां तक कि मुझे अपनी उपलब्धियों की अखबार में छपने वाली खबर भी उनसे छुपानी पड़ती थी।
आपको यह जानकार हैरानगी होगी कि मैं कभी ताइक्वांडो खेला करती थी। इस खेल में राष्ट्रीय स्तर पर मैं गोल्ड मेडल जीत चुकी हूं। तब खुशी तो बहुत हुई लेकिन साथ ही इस बात का डर भी था कि माता-पिता गुस्सा करेंगे।
जब मैं एवरेस्ट पर पहुंची तो मैंने वहां मोटे अनाज चढ़ाए। उसके पीछे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की 2023 की वह सोच छिपी थी जिसमें उन्होंने बाजरा वर्ष में सबको यह संदेश देने की कोशिश की कि मोटे अनाज को हम कैसे बढ़ावा दे सकते हैं। यानी कम खर्च में ज्यादा मुनाफा हम कैसे प्राप्त कर सकते हैंI
इतना ही नहीं, मुझे आज हरियाणा में ड्रोन दीदी के नाम से बुलाया जाता है। मैंने ड्रोन पायलट की ट्रेनिंग ली है। इसमें एक एकड़ ज़मीन पर इस्तेमाल होने वाली खाद के लिए कुछ मिलीलीटर पदार्थ का छिड़काव खेतीहर ज़मीन पर किया जाता है। इस काम से किसानों का बड़ा फायदा होने वाला है। कम समय और कम खर्च में हम कैसे ज्यादा से ज्यादा काम कर सकते हैं, यह देखना बेहद ज़रूरी होता है। एक खिलाड़ी के लिए सबसे ज़रूरी है डाइट और फिर संसाधन। संसाधनों की पूर्ति के लिए स्पॉन्सरशिप मिलना बेहद जरूरी है। अगर हमें यह सब न मिल पाए तो निराश हो जाते हैं। अब आप समझ सकते हैं कि अगर हम ही निराश हो गए तो हम अगली पीढ़ी किस तरह से प्रेरित कर पाएंगे।
मेरे ही प्रदेश की संतोष यादव की मैं बहुत बड़ी फैन हूं। जो एवरेस्ट को दो बार फतह कर चुकी हैं। मेरी भी दिली इच्छा है कि मैं भी ऐसा करूं लेकिन मेरे इस अभियान पर आए तकरीबन 40 लाख रुपये के खर्च की भरपाई हो तो मैं फिर आगे की सोचूं। एक किसान परिवार इससे ज़्यादा और क्या कर सकता है कि जिसने ज़िंदगी भर की कमाई मेरे अभियान में लगा दी। इस सबके बावजूद मुझे इस बात की खुशी है कि मैंने अन्य देश के पर्वतारोहियों के साथ इस मिशन को अंजाम दिया।
(लेखिका एवरेस्ट और माउंट लोहत्से का दुर्गम सफर रिकॉर्ड समय में पूरा करने वाली पर्वतारोही हैं)