जब विकल्प ही नहीं हैं तो फिर गेंदबाज़ी की यह परेशानी खड़ी कर सकती है बड़ी मुश्किल

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अगर भारत और दक्षिण अफ्रीका की टीमों के बीच बड़ा अंतर आज दिख रहा है तो इसकी बड़ी वजह शार्दुल ठाकुर और प्रसिद्ध कृष्णा का न चल पाना है। सेंचुरियन में न तो शार्दुल का अनुभव काम आया और न ही प्रसिद्ध कृष्णा की उछाल और गति ही कारगर रही। सच तो यह है कि इस टेस्ट में ये दोनों गेंदबाज़ टीम पर बोझ साबित हुए।

यह स्थिति तब है जबकि सेंचुरियन के मैदान की विकेट तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मददगार है। इसी पिच पर कगिसो रबाडा कई मौकों पर अनप्लेबल हो गए, जहां न तो विराट कोहली उनकी आउटस्विंग पर अपना विकेट बचा पाए और न ही रविचंद्रन अश्विन उनकी उछाल को समझ पाए। इसी तरह दूसरी पारी में रोहित शर्मा उनकी फुलर लेंग्थ की एंगल लेती गेंद को ही समझ पाए। पहली पारी में श्रेयस के लिए उनकी बॉवल सीम भी खतरनाक साबित हुई। मगर हमारे मुख्य स्ट्राइक बॉलर जसप्रीत बुमराह रबाडा जैसा खौफ पैदा नहीं कर पाए। खासकर बाएं हाथ के बल्लेबाज़ डीन एलगर और जॉर्जी ने उनकी ओवर द स्टम्प्स गेंदों पर कंधों का अच्छा इस्तेमाल करते हुए कई अच्छे स्ट्रोक खेले। जब बुमराह इनके सामने राउंड द विकेट आए तो उन्हें अपनी स्विंग पर नियंत्रण रखने में परेशानी हुई।

वहीं शार्दुल ठाकुर इस टेस्ट में स्विंग की तलाश में भटकते रहे और प्रसिद्ध कृष्णा तो वैसी गेंदबाज़ी भी नहीं कर पाए जो वह अक्सर अनुकूल परिस्थितियों में किया करते हैं। इन दोनों की दिशाहीन गेंदबाज़ी ने भारत की मुश्किलें बढ़ा दीं। यहां बड़ा सवाल यह है कि भारत के पास इनके विकल्प क्या थे। यहां मुकेश कुमार की जगह प्रसिद्ध कृष्णा को तरजीह देना टीम प्रबंधन की बड़ी ग़लती साबित हुई। मुकेश कुमार ने वेस्टइंडीज़ में पिछले दिनों मिले मौके पर दोनों ओर शानदार तरीके से गेंद को मूव कराया था। लगातार गुडलेंग्थ पर गेंद को पिच करते हुए उन्होंने अपने धैर्य का परिचय दिया था जिससे वह पहली पारी में मैकेंजी और अथांजे के विकेट झटकने में क़ामयाब हो गए थे। मगर सेंचुरियन के मैदान पर टीम प्रबंधन ने प्रसिद्ध कृष्णा की कदकाठी और गति को तवज्जोह दी मगर कृष्णा न तो गति को बरकरार रख पाए और न ही सटीक लाइन एंड लेंग्थ का ही परिचय दे पाए।

वहीं शार्दुल के दो विकल्प हैं – हार्दिक पांड्या और दीपक चाहर। मगर दोनों ही इस समय उपलब्ध नहीं हैं। हार्दिक 2018 के बाद से बड़े फॉर्मेट में खेले नहीं है। न टेस्ट न चार दिन का घरेलू क्रिकेट। न ही उनकी इस फॉर्मेट में कोई दिलचस्पी है। एक सच यह भी है कि टेस्ट मैच के लिए जितनी फिटनेस की ज़रूरत होती है, वह हार्दिक के पास नहीं है। वहीं दीपक चाहर के साथ भी फिटनेस का मसला है। वनडे के 50 ओवर ही उन पर भारी पड़ते हैं। फिर टेस्ट मैच के लिए लम्बे स्पैल में गेंदबाज़ी करना तो दूर की बात है। अब जब भारत के पास फास्ट बॉलिंग ऑलराउंडर ही नहीं है तो फिर टेल (पुछल्ला बल्लेबाज़ों) की फौज खड़ी करने से टीम का संतुलन भी प्रभावित होता है। ज़रूरत है युद्ध स्तर पर फास्ट बॉलिंग ऑलराउंडर की खोज करना और साथ ही मोहम्मद शमी के विकल्प को ढूंढना।

 

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