वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल के पहले दिन रविचंद्रन अश्विन की कमी
को महसूस किया गया। क्या ओवल में बादल के होने से भारी मौसम होना ही इसका
एकमात्र कारण है या इसके पीछे कोई और कारण है, यही सवाल हर किसी के ज़हन
में है।
जिस तरह चाय से पहले रवींद्र जडेजा को पिच पर थोड़ा टर्न मिला, उससे
स्वत: ही इस बारे में सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर अश्विन इस मैच में
क्यों नहीं है। टीम इंडिया ने भारी मौसम में चार तेज़ गेंदबाज़ों को
खिलाना मुनासिब समझा। क्या उमेश यादव और शार्दुल ठाकुर अपनी गेंदबाज़ी के
साथ न्याय कर पाए। शार्दुल तो ज़्यादातर मौकों पर अपनी लाइन और लेंग्थ से
जूझते रहे। इतने महत्वपूर्ण मैच में शॉर्ट गेंद करना उनकी सबसे बड़ी भूल
साबित हुई। डेविड वॉर्नर के रूप में उन्होंने जो एकमात्र विकेट हासिल
हुआ, वह भी इसलिए क्योंकि वॉर्नर ने उनकी लेग साइड के बाहर जाती गेंद पर
कुछ ज़्यादा ही बड़ी गलती कर दी थी, जिससे विकेट के पीछे केएस भरत ने
अपने काम को बखूबी अंजाम दिया।
बाकी उमेश यादव हमेशा की तरह अपने प्रदर्शन में निरंतरता नहीं ला पाए।
उन्होंने कुछेक गेंदें अच्छी कीं लेकिन ओवर की कम से कम दो गेंदें करके
उन्होंने अपनी पकड़ भी खोई। सच तो यह है कि लंच से पहले जिस तरह मोहम्मद
शमी और मोहम्मद सीराज ने जो दबाव बनाया था, वह शार्दुल और उमेश ने गंवा
दिया। इसी का फायदा खासकर ट्रेविस हैड और स्मिथ ने शानदार सेंचुरी
पार्टनरशिप से उठाया।
अश्विन आज दुनिया के नम्बर एक गेंदबाज़ है। यह ठीक है कि इंग्लैंड में
स्पिनरों के लिए उतना स्कोप नहीं रहता लेकिन यह भी सच है कि इंग्लैंड में
ओवल ही एकमात्र ऐसा मैदान है जहां खासकर मैच के चौथे दिन चाय के बाद या
पांचवें दिन विकेट का मिजाज़ भारतीय उपमहाद्वीप की तरह होता है, जहां
खासकर रन बनाना इतना आसान नहीं रहता। उमेश और शार्दुल के उम्मीद के
अनुकूल खरा न उतरने की वजह से भारतीय टीम पर दबाव आ गया है। गेंदबाज़ों
पर यह ज़रूरत से ज़्यादा भरोसे का ही नतीजा था कि रोहित शर्मा ने उस पिच
पर टॉस जीतकर पहले गेंदबाज़ी का फैसला किया जहां चौथी पारी में
बल्लेबाज़ी करना आसान नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर अश्विन होते तो अपनी
मौजूदगी का अहसास ज़रूर कराते।