हैदराबाद का हिसाब विशाखापट्टनम में और वह भी अच्छे खासे अंतर से। अब कोई यह शिकायत नहीं कर सकता कि टीम इंडिया ने गड्ढा विकेट बनाई हैं। स्लो टर्नर विकेटों पर जसप्रीत बुमराह ने धमाल मचाया। पहली पारी में उन्हें कुलदीप यादव का साथ मिला और दूसरी पारी में रविचंद्रन अश्विन का।
जिस तरह टीम इंडिया हैदराबाद में पहली पारी में 190 रनों की बढ़त के बावजूद हार गई, उसे देखते हुए 143 रनों की बढ़त के बावजूद भारत की उस समय सही मायने जीत की उम्मीद नहीं जगी थी। ऊपर से आखिरी छह विकेट 44 रन में गिरने से काम मुश्किल लगने लगा था। यही इंग्लैंड की टीम पिछले साल अच्छी खासी स्ट्राइक रेट से 280 से ऊपर का लक्ष्य तीन बार पार कर चुकी थी। मगर इस बार 399 का लक्ष्य बहुत बड़ा था। भारत में टेस्ट क्रिकेट में इतने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंचा जा सका था।
जसप्रीत बुमराह ने एक बार फिर रिवर्स स्विंग और निप बेकर गेंदों से इंग्लैंड की कमर तोड़ दी। अश्विन की फ्लाइट और कोण लेती गेंदों को भी अंग्रेज समझ नहीं पाई। रोहित को अक्षर के महंगे साबित होने के बावजूद उन पर भरोसा था। उनके सामने जो रूट भी बाल बाल बचे थे और कई अन्य बल्लेबाज़ों का बाहरी किनारा लेती हुई गेंद स्लिप की दिशा से निकली थी। इसी वजह से कुलदीप को देरी से लाया गया लेकिन तब तक अश्विन अपना काम कर चुके थे।
बेशक भारत सीरीज़ में बराबरी करने में क़ामयाब हो गया लेकिन क्या इस जीत को परफेक्ट टीम एफर्ट कहना ठीक होगा। जो काम गेंदबाज़ों ने दूसरी पारी में किया, वैसी एकजुटता पूरे मैच में भारत की ओर से देखने को नहीं मिली। अश्विन और अक्षर पहली पारी में ऑफ-कलर रहे। बल्लेबाज़ी में आलम यह है कि यशस्वी की पहली पारी में डबल सेंचुरी, शुभमन गिल की दूसरी पारी में सेंचुरी और अक्षर की 45 रन की पारी को छोड़कर पूरे मैच में टीम इंडिया की ओर से कोई भी खिलाड़ी 35 रन की पारी तक नहीं खेल सका। इतना ही नहीं, बल्लेबाज़ी में न रोहित चल पा रहे हैं, न श्रेयस, न रजत पाटीदार और न ही केएस भरत। ऐसा भी सम्भव है कि इनमें से तीन खिलाड़ियों को नौ फरवरी से शुरू होने वाले रणजी मैच में उतारा जाए। तीसरा टेस्ट 15 फरवरी से राजकोट में है। ऐसी स्थिति में इन्हें लय हासिल करने के लिए यह निर्देश दिया जा सकता है। वैसे सोमवार को मैच के बाद जहां एक तरफ जीत का जश्न मन रहा था, वहीं अजित आगरकर, द्रविड़ और रोहित गम्भीर चिंतन में व्यस्त थे। इस बैठक में विराट के उपलब्ध होने के मुद्दे के अलावा केएल राहुल और रवींद्र जडेजा की फिटनेस रिपोर्ट पर विस्तार से बात की गई। इस मीटिंग में श्रेयस, भरत और रजत पाटीदार को रणजी मैच में अपनी फॉर्म हासिल करने के बारे में भी चर्चा हुई। वैसे 70 और 80 के दशक में भारत में होने वाले टेस्ट मैचों के बीच में लम्बा गैप होने पर खिलाड़ी रणजी मैचों में उतरा करते थे। फर्क सिर्फ इतना है कि आज फॉर्म हासिल करने के लिए ही राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ी इस टूर्नामेंट में उतरते हैं।
अगर टीम इंडिया को इंग्लैंड के पिछले भारत दौरे की कामयाबी को दोहराना है तो एक या दो बल्लेबाज़ों पर निर्भरता छोड़नी होगी और स्पिनरों से तो खासकर भारत में हर माहौल में अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद की जा सकती है।