भारत में क्रिकेट का महाकुंभ – वर्ल्ड कप शुरू हो चुका है। पिछले तीन वर्ल्ड कप की विजेता मेजबान टीमें रही हैं। 2011 में भारत, 2015 में ऑस्ट्रेलिया और 2019 में इंग्लैंड ने अपने घर में इस खिताब पर कब्जा जमाया था। इसी क्रम को जारी रखते हुए भारत पर भी आइसीसी टूर्नामेंट का सूखा खत्म करने का दबाव होगा।
यूं तो वर्ल्ड कप भारत में खेला जा रहा है और घर में खेलने का फायदा भी घरेलू टीम को होता है लेकिन क्या ऐसा सही में है या क्रिकेट के बदलते रूप ने ‘होम एंडवांटेज’ को अब बेबुनियाद कर दिया गया है खासकर सफेद बॉल क्रिकेट में यह टर्म बेबुनियाद ही लगती है।
आईपीएल में विदेशी खिलाड़ी तकरीबन दो महीनों तक इन्हीं कंडीशन में खेलते हैं। जोस बटलर, लियाम लिविंगस्टन, मोइन अली, बेन स्टोक्स, ग्लेन मैक्सवेल, डेविड वार्नर, पैट कमिंस, मिचेल मार्श, डेवेन कॉन्वे, केन विलियम्सन, हेनरिक क्लासेन, डेविड मिलर जैसे विदेशी खिलाड़ियों के पास भारतीय पिचों का अच्छा खासा अनुभव है। जो ज़रुर उन्हें मदद करने वाला है। आइपीएल में आरसीबी की तरफ से खेलने वाले ऑस्ट्रेलियाई आलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल ने कहा कि भारतीय कंडीशंस उनके लिए अनजान नहीं है। हम इन विकेटों पर पिछले कई वर्षों से खेल रहे है।
टेस्ट में भारतीय उपमहाद्वीप में सीरीज जीतना दूसरे देशों के लिए बहुत मुश्किल हो चुका है। 2013 में आखिरी बार भारतीय टीम अपने घर में टेस्ट सीरीज हारी थी, तब से दूसरी टीमों के लिए भारत इस फार्मेट में एक अभेद्य किला बना हुआ है। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत की स्पिन गेंदबाजी जिससे पार पाना विदेशी बल्लेबाजों के कठिन रहा है।
वर्ल्ड कप में विकेट स्पिन मददगार होने पर भारत के स्पिनर अश्विन, जडेजा और कुलदीप बहुत खतरनाक हो सकते हैं लेकिन पिछले कुछ समय से भारतीय बल्लेबाजों के भी स्पिन के खिलाफ संघर्ष ने यह दिखाया है कि गेंद घूमने पर वर्ल्ड कप का मेजबान संकट में आ सकता है।
ReplyForward |