मनोज जोशी
नई दिल्ली : पिछले दो दिनों में पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने आईसीसी के
चेयरमैन ग्रेग बार्कले और ज्योफ अलार्डिस के सामने जो शर्तें रखी हैं,
उससे उसने अपने क्रिकेट का बहुत बड़ा नुकसान कर दिया है। आलम यह है कि
एशियाई क्रिकेट काउंसिल पाकिस्तान के श्रीलंका में खेलने से मना करने पर
उससे एशिया कप की मेजबानी छीन सकता है। यह भी सम्भव है कि एशिया कप बिना
पाकिस्तान के आयोजित किया जाए।
इस आशय की घोषणा अगले कुछ दिनों में एशियाई क्रिकेट काउंसिल की बैठक में
हो सकती है। पाकिस्तान इस पूरे मामले में अलग-थलग पड़ गया है। श्रीलंका
क्रिकेट बोर्ड और बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने पीसीबी से दूरी बना ली है।
अफगानिस्तान बोर्ड शुरू से बीसीसीआई के साथ है। श्रीलंका बोर्ड तो यह
ऐलान भी कर चुका है कि क्रिकेट से जुड़े मसलों पर वह हमेशा बीसीसीआई के
साथ है। पाकिस्तान के अलग-थलग पड़ने की बड़ी वजह आईसीसी के अधिकारियों के
सामने रखी वह शर्त है जिसमें उसने चैम्पियंस ट्रॉफी में टीम इंडिया के
पाकिस्तान आने की गारंटी आईसीसी से मांगी थी और यह भी कहा था कि यह
गारंटी मिलने पर ही पाकिस्तान अक्टूबर में होने वाले वर्ल्ड कप में भारत
आएगा।
पाकिस्तान यह भूल गया है कि उसे ब्रॉडकास्टर से मोटी धनराशि इस शर्त पर
मिली है कि एशिया कप और वर्ल्ड कप में भारत और पाकिस्तान के मैच होंगे।
मगर पीसीबी ने इस शर्त पर ध्यान देने के बजाय आईसीसी पर भारत के
पाकिस्तान आने की शर्त को थोप दिया। उसके इस कदम से उसने आईसीसी, एसीसी
और ब्रॉडकास्टर तीनों को अपना दुश्मन बना लिया है।
पाकिस्तान के हाईब्रिड मॉडल की भी पोल खुल गई है जिसमें उसने भारत के मैच
दुबई या श्रीलंका में होने की बात कही थी। मगर आईसीसी के दो टॉप
अधिकारियों के साथ बातचीत में उसने भारत में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए
भी हाईब्रिड मॉडल का प्रस्ताव रख दिया। यह वर्ल्ड कप राउंड रॉबिन लीग
आधार पर हो रहा है। यानी हर टीम को हरेक से खेलना है। यानी पाकिस्तान अगर
अपने मैच दुबई में खेलता है तो नौ टीमों को उससे खेलने के लिए दुबई जाना
होगा, जो व्यवहारिक नहीं है। आखिर अब उसे भारत में खेलने से क्यों डर
लगने लगा है। वह 1996 के वर्ल्ड कप में बैंगलुरु, 2011 के वर्ल्ड कप में
मोहाली, 2016 के टी-20 वर्ल्ड कप के लिए कोलकाता आ चुका है। यहां तक कि
2013 में भारत से तीन वनडे मैचों की सीरीज़ के लिए भी मिस्बा-उल-हक की
टीम भारत आ चुकी है। अब आखिर ऐसा क्या हो गया जो उसे भारत में खेलने में
परेशानी है।
पीसीबी को आईसीसी के रेवेन्यू शेयरिंग फॉर्मूले पर भी ऐतराज है। भारत को
38.5 फीसदी और उसे 5 फीसदी से कुछ अधिक राशि मिलेगी। इसके लिए उसका तर्क
है कि भारत-पाकिस्तान मैच से करीब 400 करोड़ रुपये की आमदनी होती है। उसे
ज़्यादा हिस्सा मिलना चाहिए। यहां गौरतलब है कि भारत को रेवेन्यू इसलिए
ज़्यादा मिल रहा है क्योंकि वह आईसीसी के लिए ब्रॉडकास्टर और बड़े भारतीय
बाज़ार की वजह से ज़्यादा धनराशि जुटा रहा है। पीसीबी की बात को अगर माना
जाता है तो कल ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड भी एशेज सीरीज़ के आंकड़े लेकर
आईसीसी के सामने ऐसी ही मांग को लेकर खड़े हो सकते हैं। ज़ाहिर है कि
पाकिस्तान को ऐसी अड़ंगेबाज़ी को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए और 1996
के वर्ल्ड कप के संयुक्त आयोजन की तरह अच्छे भागीदार और दोस्त होने की
मिसाल कायम करनी चाहिए।