अहम मैच में रैश शॉट खेलने वालों को झटका देना ज़रूरी, अभी से देने होंगे युवा खिलाड़ियों को मौके

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WTC फाइनल हारने के बाद देश भर में हो-हल्ला मचने लगा है। कोई कोच को
हटाने की बात कर रहा है तो कोई कप्तान को। क्या मौजूदा स्थितियों में
विदेशी कोच टीम की नैया पार करा सकता था। क्या आईपीएल के चंद कुछ दिनों
बाद WTC फाइनल खेलने के लिए भारतीय खिलाड़ियों को पर्याप्त समय मिल पाया।
क्या आईपीएल के थकाऊ कार्यक्रम के तुरंत बाद खुद को बड़े फॉर्मेट और
इंग्लैंड की कंडीशंस के अनुकूल हम खुद को ढाल पाए। क्या विदेशी कोच ऐसे
हालात के बावजूद टीम को जिता पाते।
अगर रोहित, पुजारा और विराट खराब शॉट खेलकर आउट हुए हैं तो इसके लिए इन
दिग्गजों की जवाबदेही ज़रूर बनती है। कुछ दिनों के बाद इन सब बुनियादी
ग़लतियों को भुला दिया जाएगा। फिर अगले फाइनल में हम इन्हीं ग़लतियों को
फिर दोहराएंगे। अगर यही सब चलता रहा तो फिर आईसीसी के सूखे को दस साल
नहीं, 20 साल होते भी देर नहीं लगेगी।
याद कीजिए 1984 की वह घटना जब सुनील गावस्कर ने बतौर कप्तान कपिलदेव और
संदीप पाटिल को दिल्ली टेस्ट में खराब शॉट खेलने की वजह से कोलकाता में
खेले गए अगले टेस्ट से बाहर कर दिया था, जबकि कपिलदेव टीम के बॉलिंग
ऑलराउंडर थे। आज रोहित शर्मा निर्भीकता से खेलने और कुछ अलग करने के तर्क
देते हैं। ग़लती एक बार हो तो समझ आती है लेकिन अगर वह बार-बार की जाए तो
ऐसी निर्भीकता का कोई मतलब नहीं है।
इन अनुभवी खिलाड़ियों को बोर्ड की ओर से यह संदेश ज़रूर जाना चाहिए कि
घरेलू क्रिकेट में रुतुराज गायकवाड़, यशस्वी जायसवाल और सरफराज़ खान जैसे
कई दिग्गज लगातार बढ़िया प्रदर्शन कर रहे हैं। इन खराब शॉटों की वजह से
इन दिग्गजों को एक या दो सीरीज़ में मिलने वाला झटका या तो इन्हें
ज़िम्मेदार क्रिकेटर बना देगा या फिर इनकी जगह खेलने वाला युवा क्रिकेटर
भविष्य की खोज साबित होगा। ये काम तुरंत प्रभाव से किए जाने चाहिए।
साथ ही यह भी सच है कि 40 से 45 डिग्री में आईपीएल खेलकर सीधे 20-22
डिग्री में इंग्लैंड में खेलना जहां बड़ी चुनौती थी, वहीं आईपीएल से सीधे
बड़े फॉर्मेट में खेलने और इंग्लैंड की कंडीशंस में पूरी तरह से न ढल
पाना हार की बड़ी वजह साबित हुई। वहीं ऑस्ट्रेलिया की टीम सिडनी में
पिछले कई महीनों से इस मैच के लिए कड़ी मेहनत कर रही थी। न हमने टूर मैच
खेलना मुनासिब समझा और न ही हमारे शीर्ष क्रम ने अपनी ज़िम्मेदारी को
समझा। अगर समझा होता तो इंग्लैंड में पिछले सीज़न में दो टेस्ट की जीत की
तरह ही हम यहां भी खूब लड़कर खेलते। तब रोहित और केएल राहुल की सेंचुरी
और उनकी बतौर सलामी जोड़ी टीम इंडिया की जीत का बड़ा कारण बनी थी।
शीर्ष क्रम ऑस्ट्रेलिया का भी अच्छा नहीं खेला लेकिन उन्हें इस कमज़ोरी
से उबरना आता है। वहीं हमारे रहाणे और शार्दुल डैमेज कंट्रोल करते रह गए।
टॉस जीतकर पहले फील्डिंग चुनने से काम थोड़ा और मुश्किल हो गया और ऊपर से
दुनिया के नम्बर एक गेंदबाज़ आर अश्विन को न खिलाकर बाकी की रही सही कसर
पूरी हो गई। वह भी ऐसी पिच पर जहां कुल नौ विकेट नाथन लॉयन और जडेजा के
हिस्से आए थे। अगर रोहित बड़ी पारियां नहीं खेल सकते तो आजिंक्य रहाणे
जैसा सुलझा हुआ खिलाड़ी उनकी जगह कप्तानी के लिए तैयार हैं। यह ठीक है कि
भारत ने क्विंटन डिकॉक और डंकन फ्लेचर की कोचिंग में दो आईसीसी ट्रॉफियां
जीतीं लेकिन आज ज़रूरत विदेशी कोचों की नहीं, बल्कि खिलाड़ियों की
मानसिकता बदलने की है। ज़ाहिर है कि बेवजह का पैनिक बटन बजाने के बजाय
हार के असली कारणों का पता लगाकर वरिष्ठ खिलाड़ियों की जवाबदेही तय की
जाए और उनके खिलाफ उचित एक्शन लिया जाए जिसका असर बाकी खिलाड़ियों पर भी
पॉज़ीटिव दिखाई दे।

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