पहले 50 ओवर तक फील्डिंग, फिर छठे नम्बर पर आकर डबल सेंचुरी और वह भी तब जबकि ऑस्ट्रेलियाई टीम 91 रन में सात विकेट खो चुकी थी। अफगान गेंदबाज़ चढ़कर खेल रहे थे। उनका सपना था सेमीफाइनल में पहुंचने का। इसलिए भी कि वॉर्नर, लैबुशेन, हैड, मार्श, जोस इंग्लिस, स्टॉयनिस और मिचेल स्टार्क सबके सब पविलियन लौट चुके थे। मगर अफगान टीम ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि मुम्बई में ऐसा तूफान आएगा कि उसकी टीम के परखच्चे उड़ जाएंगे। उनका सपना टूट जाएगा और इससे भी बढ़कर यह कि ऑस्ट्रेलिया उनके जबड़े से जीत छीन लेगा। यह सब हुआ मैक्सवेल की अद्भुद पारी की वजह से। मैक्सवेल अपनी टीम के वन मैन आर्मी साबित हुए। न उनसे पहले किसी ने ऐसी धाकड़ पारी खेली थी और न ही ऐसी धाकड़ पारी की उम्मीद ही है।
यह पारी ऐसे हालात में सामने आई जब उनके कमर के नीचे की मासपेशियों में खिंचाव था। उन्हें हैमस्ट्रिंग की समस्या भी इस पारी के दौरान देखी गई। क्रैम्प ने रही सही कसर पूरी कर दी जिससे उन्हें मैदान पर कई बार कभी औंधे मुंह तो कभी उल्टे लेटे देखा गया लेकिन कहते हैं न कि अगर जीत का जज्बा हो तो कोई भी बाधा रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। वही कुछ मैक्सवेल की पारी में देखने को मिला। चौके छक्कों की बरसात के बीच उन्होंने कब डबल सेंचुरी पूरी कर ली, इसका सही अंदाज़ा भी नहीं लग पाया। इस पारी को देखकर ही अहसास हो पाया कि छठे नम्बर पर भी वनडे क्रिकेट में डबल सेंचुरी लगाई जा सकती है।
कुछ रोज़ पहले यही खिलाड़ी नीदरलैंड के खिलाफ 47वें ओवर में हाफ सेंचुरी पूरी करता है और फिर 50वें ओवर में सेंचुरी पूरी करके अद्भुद उदाहरण पेश करता है, जो विश्व क्रिकेट में इससे पहले नहीं देखा गया था। मैक्सवेल ने इन दो पारियों से दिखा दिया कि वह अपने फन के फनकार हैं और आधुनिक क्रिकेट के बेताज बादशाह हैं। ऐसा कहकर हम विराट और रोहित का महत्व कम नहीं कर रहे हैं। ये दोनों अपनी जगह हैं और अपनी कला के वे भी फनकार हैं लेकिन हमने तो यही सुना है कि हारी बाज़ी को जीतने वाले को बाज़ीगर कहा जाता है। मैक्सवेल आज दुनिया के सबसे बड़े बाज़ीगर साबित हुए।
यह सब तब हुआ जबकि अफगानिस्तान के पास विश्व स्तर का अटैक है। खासकर उसके स्पिनरों का कोई सानी नहीं है। स्पिनरों ने सारे नुस्खे आजमा लिए। कभी फ्लाइट, कभी फ्लैटर-वन, कभी लेग स्पिन, कभी गुगली, कभी ऑफ स्पिन, कभी गति परिवर्तन – क्या नहीं किया इन चार-चार जांबाज़ स्पिनरों ने लेकिन कोई भी मैक्सवेल का बाल बांका नहीं कर सका। उनकी पारी को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे कई दिनों का भूखा शेर अपने शिकार पर टूट पड़ा हो।
मैं पिछले 30 वर्षों से खेल पत्रकारिता में सक्रिय हूं लेकिन मुझे आज तक न मैक्सवेल की ऐसी पारी देखने को मिली और न ही उनकी नीदरलैंड के खिलाफ सेंचुरी जैसी पारी ही नसीब हो पाई। वह मॉडर्न डे क्रिकेट के शहंशाह हैं क्योंकि ऐसी पारियां कोई बिरला ही खेल सकता है।