आज के दौर में जब भी कभी बाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ का नाम आता है तो
रवींद्र जडेजा का नाम बड़े आदर से लिया जाता है क्योंकि यह खिलाड़ी एक तो
तीनों फॉर्मेट खेलता है और दूसरे, बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग में बेजोड़
है। यही वजह है कि टेस्ट क्रिकेट में ज़्यादातर मौकों पर उन्हें
रविचंद्रन अश्विन की तुलना में ज़्यादा अहमियत दी गई।
जडेजा के साथ ही अक्षर पटेल के रूप में एक दूसरे बाएं हाथ के स्पिनर
उभरकर सामने आए जिन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ डेब्यू सीरीज़ में ही अश्विन
के साथ कहर बरपाया और भारत को सीरीज़ जिताने में अहम योगदान दिया। इसी
खिलाड़ी को कभी जडेजा का कवर कहा जाता था लेकिन बोर्डर-गावस्कर ट्रॉफी
में दोनों खेले और अक्षर ने खासकर बल्लेबाज़ी से वह काम कर दिखाया जो टीम
के बल्लेबाज़ भी नहीं दिखा पाते।
अब इस फेहरिस्त में तीसरा नाम आया है सौरभ कुमार को। सौरभ भी बाएं हाथ के
स्पिनर हैं। दलीप ट्रॉफी के क्वॉर्टर फाइनल में उन्होंने ईस्ट ज़ोन के
खिलाफ 11 विकेट चटकाकर सबको चौंका दिया। खासकर दूसरी पारी में उन्होंने
आठ विकेट हासिल करके पूर्व क्षेत्र की उम्मीदों को पूरी तरह से ध्वस्त कर
दिया। अच्छी बात यह है कि सौरभ बल्लेबाज़ी करना भी जानते हैं। फर्स्ट
क्लास क्रिकेट में उनके नाम दो सेंचुरी और 11 हाफ सेंचुरी हैं। घरेलू
क्रिकेट में लगातार उनके अच्छे प्रदर्शन की वजह से उन्हें दो साल पहले
इंग्लैंड दौरे के लिए बतौर नेट बॉलर बुलाया गया था। पिछले साल श्रीलंका
के खिलाफ उन्हें टेस्ट टीम में शामिल किया गया।
सौरभ की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह न सिर्फ गेंद को अच्छा खासा टर्न
कराते हैं बल्कि बीच-बीच में लूप का भी अच्छा इस्तेमाल करते हैं। गेंद
में गति देने से वह परहेज करते हैं जिससे बल्लेबाज़ को उनके सामने बड़े
शॉट्स खेलने के लिए अच्छी खासी ताक़त का इस्तेमाल करना पड़ता है। सौरभ
कुमार मानते हैं कि उन्होंने यह कला लीजेंड्री स्पिनर बिशन सिंह बेदी से
सीखी है। सौरभ बागपत से हैं लेकिन अब क्रिकेटर बनने के लिए दिल्ली आ गए
हैं लेकिन खेलते उत्तर प्रदेश से ही हैं। हालांकि आईपीएल में उन्हें दो
साल पहले पंजाब किंग्स की ओर से चुना गया लेकिन उत्तर प्रदेश की ओर से
रणजी ट्रॉफी और इंडिया ए की ओर से ही उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई
है।