क्या प्लानिंग, क्या बॉलिंग और क्या दबाव बनाने की रणनीति….सब विभागों में कंगारूओं ने हमें पीछे छोड़ दिया। हमसे न तो प्लानिंग हुई, न कप्तानी और न उनके जैसी बॉलिंग … बाकी बैटिंग ने तो पूरी तरह डुबो ही दिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑस्ट्रेलिया ने जितना विरोधी टीम की ताक़त और कमज़ोरी को पढ़कर अपनी रणनीति बनाई, वैसा हम ऐसा नहीं कर सके। जो दोनों टीमों के बीच का अंतर साबित हुआ।
हमें गुमान था कि अंडर-19 वर्ल्ड कप में हम ऑस्ट्रेलिया से पिछले 26 वर्षों से कभी नहीं हारे और न ही कभी उससे फाइनल में हारे। लीग में जैसा हमने प्रदर्शन किया, उससे डब्ल्यूटीसी फाइनल, वनडे वर्ल्ड कप फाइनल और 2003 की हार का हिसाब चुकता करने की उम्मीदें जगने लगी थीं। ऑस्ट्रेलिया ने जब फाइनल में अब तक का सबसे बड़ा स्कोर बनाया, तब भी यह उम्मीद थी कि उदय, मुशीर और सचिन की तिकड़ी बेड़ा पार लगाएगी, मगर हुआ इससे एकदम उल्टा। उदय गेंद की ऊंचाई को और सचिन फ्लाइट को लेकर उलझ गए जबकि मुशीर आगे की गेंद को पीछे खेल गए। इसी तरह आरशिक आउटस्विंगर पर जबकि आदर्श और प्रियांशू को अक्रॉस खेलना महंगा साबित हुआ।
ऑस्ट्रेलिया की प्लानिंग देखिए, वे मौके पर चार तेज़ गेंदबाज़ों के साथ उतरे। मैच के शुरू में गेंदबाज़ों के लिए सहायक पिच के बावजूद पहले बैटिंग चुनी क्योंकि वह जानते थे भारत की ताक़त को। उस ताकत को, जिससे हमने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए लीग के सारे मैच जीते थे। वह बाद में भारत के बैटिंग करने और जूझने की कमज़ोरी से वाकिफ थे, जो साउथ अफ्रीका के खिलाफ सामने आई थी। वह बात अलग है कि भारत के जीतने के साथ ही देश भर में जश्न का माहौल और भविष्य की उम्मीद नज़र आने लगी थी। तेज़ गेंदबाज़ों का खौफ इस कदर था कि उनके सामने हमारे बल्ले के टाइमिंग ही गड़बड़ा गये। नतीजतन गेंद पहले निकल रही थी और बल्ला बाद में आ रहा था।
कप्तानी ने भी अंतर पैदा किया। हमारे कप्तान पहले ओवर में पिटने पर नमन तिवारी को मोर्चे से हटा देते हैं और बहुत जल्द दोनों ओर से स्पिन अटैक लगा दिया जाता है। यह बड़ी भूल थी। हमें जब अटैक करना चाहिए था, वहां हमने सीम कंडीशंस के बावजूद स्पिनरों पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा करके उन्हें जमने का मौका दे दिया। इसे कैलकुलेशन की कमी ही कहा जाएगा कि हमारे मुख्य गेंदबाज़ नमन तिवारी अपने कोटे के पूरे ओवर भी नहीं कर पाए जबकि विपक्षी कप्तान का बॉलिंग चेंज से लेकर हर दांव सटीक रहा।