बुमराह को लेकर गावसकर के बयान में झलका विरोधाभास

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बहुत गुमान था, बैज़बॉल पर, टीम इंडिया के टीम वर्क ने निकाल दी हवा

 

क्या जसप्रीत बुमराह कपिलदेव और ईशांत शर्मा की बराबरी नहीं कर सकते। यह बात  सुनने में अटपटी ज़रूर लगती है लेकिन सुनील गावसकर ने उनके बारे में इससे मिलती जुलती बात कहकर सबको चौंका दिया है। उन्होंने रोहित शर्मा और राहुल द्रविड़ के प्रबंधन पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि जसप्रीत बुमराह को राजकोट टेस्ट में सिर्फ 23 ओवर की गेंदबाज़ी के बाद रांची में अगले टेस्ट से बाहर क्यों बिठाया गया जबकि इस टेस्ट से पहले उन्हें नौ दिन का आराम भी मिल गया था।

गावसकर का कहना है कि जब विराट और केएल राहुल टीम में नहीं थे तो फिर बुमराह को आराम देने का कोई मतलब नहीं था। वह तो भला हो अपना पहला टेस्ट खेल रहे आकाशदीप का कि उन्होंने पहली पारी में शानदार गेंदबाज़ी करते हुए बेन डकेट, ज़ैक क्राले और ओलि पोप के विकेट चटकाकर बुमराह की कमी को खलने नहीं दिया।

गावसकर की बात ग़लत नहीं है लेकिन आज के संदर्भों में बहुत व्यावहारिक भी नहीं है। बुमराह आज टीम इंडिया के ट्रम्प कार्ड हैं और किसी भी आईसीसी टूर्नामेंट में वह भारत की बड़ी उम्मीद हैं। उनका फिट रहना बेहद ज़रूरी है। तकरीबन साल भर पहले भी अनफिट होने की वजह से वह टीम इंडिया से बाहर थे। वर्ल्ड कप से लेकर बाइलेटरल सीरीज़ में वह टीम के काफी भरोसे के गेंदबाज़ साबित हुए। सच तो यह है कि कई टीमों के बल्लेबाज़ों के लिए बुमराह अबूझ पहेली बने रहे। वर्कलोड मैनेजमेंट ने अगर बुमराह को रांची टेस्ट के लिए आराम देने की वकालत की है तो इसके पीछे कई मेडिकल कारण भी निहित हैं। ज़ाहिर है कि उनके जैसे उर्जावान खिलाड़ी को अन्य बड़े मुक़ाबलों के लिए फिट बनाए रखने के लिए ही ऐसा किया गया है।

यहां खासतौर पर कपिलदेव और ईशांत शर्मा का उदाहरण दिया जा सकता है। कपिलदेव ने 1983 के अहमदाबाद टेस्ट में वेस्टइंडीज़ के खिलाफ लगातार साढ़े 30 ओवर की गेंदबाज़ी में नौ विकेट चटकाए थे। उस पारी में बलविंदर सिंह संधू, रवि शास्त्री, मनिंदर सिंह और कीर्ति आज़ाद ने जितनी गेंदबाज़ी की, उससे ज़्यादा गेंदबाज़ी तो अकेले कपिल देव ने ही की थी। इसी तरह 2008 का पर्थ टेस्ट याद कीजिए। ईशांत शर्मा ने दो लम्बे स्पेल में गेंदबाज़ी करके टीम इंडिया की मुश्किलें हल कर दीं जबकि उससे कुछ ही समय पहले वह बैंगलुरु में पाकिस्तान के खिलाफ टेस्ट खेलकर आए थे। ईशांत शर्मा ने माना भी कि रोहतक रोड जिमखाना में जिन दिनों वह प्रैक्टिस किया करते थे, तब ढाई से तीन घंटे में वह कितने ओवरों की गेंदबाज़ी करते थे, इसका कोई हिसाब ही नहीं होता था और न ही उन्हें इसकी कोई थकान महसूस होती थी।

मगर आज हालात बदल गए हैं। कपिलदेव के समय में न आईपीएल होता था और न ही टी-20 फॉर्मेट ही अस्तित्व में आया था। ईशांत शर्मा की पहचान भी टेस्ट क्रिकेट में ही बनी। बुमराह का बॉलिंग एक्शन कुछ इस तरह का है कि उससे उनके लोअर बैक हिस्से पर ज़ोर पड़ता है। एक जगह कपिलदेव ने भी माना है कि बुमराह को गेंदबाज़ी करते देखना अच्छा लगता है। वेस्टइंडीज़ के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ माइकल होल्डिंग बुमराह के एक्शन को लेकर पहले ही ऐसे सवाल उठा चुके हैं। ज़ाहिर है कि बुमराह की तुलना पुराने क्रिकेटरों से करना उचित नहीं है। वह आज के दौर के सुपरस्टार हैं और आईसीसी के किसी भी फॉर्मेट के क्रिकेट में वह भारत की बड़ी उम्मीद भी हैं।

 

 

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