यशस्वी जायसवाल ने केन विलियम्सन और निसांका को पीछे छोड़ा

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यशस्वी जायसवाल को फरवरी महीने का आईसीसी प्लेयर ऑफ द मंथ के पुरस्कार से नवाज़ा गया है। उन्होंने केन विलियम्सन और पाथुम निसांका को पीछे छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया। उन्हें निरंतर अच्छा प्रदर्शन करने का फायदा मिला।

यशस्वी ने फरवरी महीने में तीन टेस्ट खेले। विशाखापट्टनम और राजकोट टेस्ट में उन्होंने डबल सेंचुरी बनाई और रांची टेस्ट में उन्होंने 73 रन की शानदार पारी खेली। ये तीनों ही टेस्टों में टीम इंडिया विजयी रही। विशाखापट्टनम टेस्ट में तो यशस्वी खासकर पहली पारी में वन मैन आर्मी साबित हुए थे। टीम का कोई भी अन्य बल्लेबाज़ 35 रन तक नहीं बना सका था।

वहीं न्यूज़ीलैंड के केन विलियम्सन ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ माउंट मानगुनई टेस्ट में दोनों पारियों में सेंचुरी बनाकर अपनी टीम को जीत दलाई। इसी तरह हैमिल्टन में अगले ही टेस्ट में उन्होंने फिर सेंचुरी बनाकर अपनी टीम की जीत में अहम योगदान दिया। इस तरह चार पारियों में उन्होंने तीन सेंचुरी बनाईं। वैलिंग्टन टेस्ट उनका खराब गया। इस बार सामने थी ऑस्ट्रेलिया की टीम। यहां दोनों पारियों में वह दहाई की संख्या तक भी नहीं पहुंच पाए और न्यूज़ीलैंड की टीम यह टेस्ट हार गई।

श्रीलंका के धाकड़ बल्लेबाज़ पाथुम निसांका फरवरी के महीने में अफगानिस्तान के खिलाफ तीन वनडे और इतने ही टी-20 मैच खेले। वनडे में उनका प्रदर्शन शानदार रहा। उन्होंने पहले मैच में डबल सेंचुरी और तीसरे मैच में सेंचुरी बनाई। टी-20 क्रिकेट में आखिरी मैच में वह 60 रन बनाकर नॉटआउट रहे जबकि पहले दो मैचों में उनके बल्ले से ज्यादा रन नहीं बने।

यशस्वी के पक्ष में दो बातें जाती हैं। पहली यह कि झउन्होने तीनों मैचों में शानदार प्रदर्शन किया जबकि केन विलियम्सन ने वैलिंग्टन टेस्ट में खराब प्रदर्शन से अपनी टीम को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मुश्किल में डाल दिया और टीम हार गई। वहीं निसांका दो बार टी-20 और एक बार वनडे में बड़ा स्कोर नहीं बना पाए। ज़ाहिर है कि आईसीसी ने निरंतरता को तरजीह दी है। दूसरे, यशस्वी की बल्लेबाज़ी पर खासकर विशाखापट्टनम टेस्ट में टीम निर्भर रही। पहली पारी में उनका अकेले दम पर डबल सेंचुरी बनाना उन्हें बाकी दोनों दावेदारों से अलग साबित करता है।

पहले ज्वाला सिंह और फिर राजस्थान रॉयल्स में ज़ूबिन भरूचा से मिली टिप्स का उन्होंने भरपूर लाभ उठाया। वह कंडीशंस के अनुसार बल्लेबाज़ी के लिए जाने जाते हैं। जब धैर्य दिखाना होता है तो इसी तरह खेलते हैं और जब आक्रामकता दिखानी होती है तो भी वह उसमें भी सबसे आगे रहते हैं। इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज़ में सबसे ज़्यादा छक्के उनके बल्ले से ही देखने को मिले।

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