जिस साउथ अफ्रीकी ज़मीं पर हमारा रिकॉर्ड सबसे खराब है, वहां अनुभव से ही पार पाया जा सकता था। हम न पुजारा को साथ लेकर गए और न ही आजिंक्य रहाणे को। ऋषभ पंत और मोहम्मद शमी के उपलब्ध न होने से रही-सही कसर पूरी हो गई।
क्या केवल तीन गेंदबाज़ों (बुमराह, सिराज और अश्विन) और दो बल्लेबाज़ों (पहली पारी में केएल राहुल और दूसरी पारी में विराट) के दम पर आप उस साउथ अफ्रीका में टेस्ट जीत सकते हैं, जहां 31 साल में भारत केवल चार ही टेस्ट जीता है। इनमें भी खासकर अश्विन पर कप्तान का उतना भरोसा नहीं था, जितना कि होना चाहिए था। साउथ अफ्रीका में बल्लेबाज़ी करना कितनी बड़ी चुनौती होता है, इस बात से टीम मैनेजमेंट पूरी तरह से वाकिफ था। फिर ये चूक क्यों हुई, इसका जवाब भी उसे ही देना है। आखिर क्या वजह है कि इन तेज़ पिचों पर साउथ अफ्रीका के तेज़ गेंदबाज़ अनप्लेबल हो जाते हैं और हमारे गेंदबाज़ सही लाइन-लेंग्थ के लिए जूझते रह जाते हैं। पहला टेस्ट खेल रहे उनके बल्लेबाज़ भी चलते हैं और गेंदबाज़ भी लेकिन हमारे तेज़ गेंदबाज़ प्रसिद्ध कृष्णा की हालत उस स्कूली छात्र जैसी हो जाती है, जो परीक्षा के समय अपनी सारी तैयारी भूल जाता है। मैच में न उनकी पेस दिखाई दी और न ही वह उछाल जिसके लिए वह जाने जाते हैं। यही हाल शार्दुल ठाकुर का है जो स्विंग की तलाश में ही भटकते रह गए…तो फिर ऐसा परिणाम आना ही था।
ऐसा भी देखा गया है कि साउथ अफ्रीकी तेज़ गेंदबाज़ जब राउंड द विकेट आते हैं तो और भी खतरनाक हो जाते हैं। रिलीज़ पॉइंट से उनके कोण का अंदाज़ा बल्लेबाज़ नहीं लगा पाता लेकिन हमारे गेंदबाज़ जब राउंड द विकेट आते हैं तो उनकी गेंदें लेग स्टम्प के बाहर से निकल जाती हैं। इसकी बड़ी वजह साउथ अफ्रीकी टीम में कई बाएं हाथ के खिलाड़ियों का होना है। टीम में पहले से बाएं हाथ के तेज़ गेंदबाज़ मार्को येनसेन थे जो अच्छे खासे उछाल के लिए अपनी ऊंची कदकाठी का भरपूर फायदा उठाते हैं, अब नांद्रे बर्गर के रूप में एक और तेज़ गेंदबाज़ के आने से टीम की ताक़त कई गुना बढ़ गई है। एक ऐसा तेज़ गेंदबाज़ जो दोनों पारियों में यशस्वी, गिल और केएल राहुल को पविलियन भेजते हैं और दूसरी पारी में रविचंद्रन अश्विन का भी ऐसा ही हश्र करते हैं। केएल राहुल और अश्विन को शरीर से दूर खेलने की आदत महंगी साबित हुई।
रही सही कसर कगिसो रबाडा ने पूरी कर दी जिन्होंने साबित कर दिया कि वह अपने घर के वैसे ही शेर हैं जैसे अश्विन। साउथ अफ्रीका के बाहर औसत दर्जे के तेज़ गेंदबाज़ साबित होते हैं जहां उन्हें छह टेस्टों में केवल नौ विकेट हासिल होते हैं लेकिन यही रबाडा अपने घरेलू मैदानों पर भारत के खिलाफ सात टेस्ट मैचों में 41 विकेट हासिल करते हैं और वह भी 18.17 के औसत और 35.9 के स्ट्राइक रेट के साथ। यानी तकरीबन हर छह ओवर के बाद वह भारतीय बल्लेबाज़ का विकेट हासिल करते हैं। रोहित को दोनों पारियों में आउट करना, उसमें भी खासकर दूसरी पारी में एक ऐसी फुलर लेंग्थ गेंद पर आउट करना जो मिडिल स्टम्प पर एंगल लेती हुई ड्रीम बॉल साबित होती है। यशस्वी जायसवाल और शुभमन गिल कितने भी टैलंटेड क्यों न हो लेकिन पहला टेस्ट खेल रहे नांद्रे बर्गर के सामने दोनों पारियों में असहाय साबित हो जाते हैं। फर्क सिर्फ लेंग्थ में बदलाव का है। यशस्वी उनके सामने पहली पारी में फुलर गेंद पर आउट हुए तो दूसरी पारी में उछाल लेती शॉर्ट पिच गेंद पर आउट हुए। दोनों ही बार विकेट के पीछे लपके गए। इसी तरह गिल पहली पारी में उनके सामने लेंग्थ बॉल पर और दूसरी पारी में यॉर्कर लेंग्थ पर बोल्ड हुए।