बेशक टीम इंडिया ने न्यूज़ीलैंड को वर्ल्ड कप के लीग मुक़ाबलों में हरा दिया हो लेकिन उसके खिलाफ आईसीसी टूर्नामेंटों के नॉकआउट में पिछले अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। मगर जिस तरह से टीम इंडिया इस बार चैम्पियन की तरह खेल रही है, उसे देखते हुए वह फेवरेट है। अक्सर चर्चा न्यूज़ीलैंड के अटैक और भारतीय बल्लेबाज़ी की होती है लेकिन इस बार न्यूज़ीलैंड का टॉप ऑर्डर और भारतीय गेंदबाज़ी की चर्चा सबसे अधिक है। टॉप ऑर्डर पर लगाम लगाने का मतलब है मुक़ाबले को आसानी से जीतना।
शुरुआत डेवन कॉन्वे और रचिन रवींद्र की जोड़ी से करते हैं। दोनों बाएं हाथ के बल्लेबाज़ हैं। कॉन्वे को पांच बार तेज़ गेंदबाज़ों ने और तीन बार स्पिनरों ने आउट किया है। अक्सर देखा गया है कि वह मिडिल और लेग स्टम्प की गेंद पर फंसते हैं। इस वर्ल्ड कप में मुजीब, सिराज और हैज़लवुड के सामने उनकी यही परेशानी सामने आई थी। चमीरा, हसन अली और मार्को येनसेन ने शॉर्ट और अतिरिक्त उछाल से उन्हें अपना निशाना बनाया। उनकी इस कमज़ोरी का फायदा उठाने के लिए भारतीय पेस बैटरी खासकर शॉर्टपिच गेंदों से उन्हें पविलियन भेजने की तैयारी कर रही है। अगर यह बल्लेबाज़ एक बार जम जाए तो वह इंग्लैंड के खिलाफ 152 रन की पारी खेलकर ही दम लेता है।
रचिन रवींद्र इस वर्ल्ड कप की एक नई सनसनी हैं, जो खासकर स्पिनरों को काफी अच्छा खेलते हैं। शायद इसीलिए वह तेज़ गेंदबाज़ों के सामने पांच बार और स्पिनरों के सामने दो बार आउट हुए हैं। शॉर्ट गेंदों के सामने कट या पुल खेलते हुए वह अक्सर क्रॉस बैट का इस्तेमाल करते हैं। मार्को येनसेन ने उन्हें ऐसी ही एक शॉर्ट गेंद पर आउट किया था। इसके अलावा उन्हें फुलर गेंदें करके सामने खेलने के लिए मजबूर किया जा सकता है। उन्हें लांग ऑफ के ऊपर से कमिंस के खिलाफ और लांग ऑन के ऊपर से शमी के खिलाफ बड़ा शॉट खेलने में दिक्कत आई थी, जहां वह पॉवर का उतना इस्तेमाल नहीं कर पाए थे कि गेंद छक्के के लिए सीमारेखा को पार कर पाती। इसके अलावा वह लेफ्ट आर्म पेसर के सामने भी आम भारतीय की तरह बहुत आरामदायक नहीं रह पाते लेकिन दिक्कत यह है कि भारत के पास बाएं हाथ का तेज़ गेंदबाज़ ही नहीं है।
डेरेल मिचेल न्यूज़ीलैंड टीम के एक अन्य खतरनाक पॉवरहिटर हैं, जिन्होंने लीग मैच में खासकर कुलदीप यादव के खिलाफ चार छक्के लगाकर उन्हें दूसरे स्पैल में डिफेंसिव गेंदबाज़ी करने के लिए मजबूर कर दिया था। इन पर अंकुश लगाने का सबसे बढ़िया तरीका इनके खिलाफ स्लोअर गेंदों का इस्तेमाल करना है क्योंकि ऐसी गेंदों के सामने अक्सर उनके टाइमिंग गड़बड़ा जाते हैं। उनकी बल्लेबाज़ी जितनी देरी से आएगी, उतना ही अच्छा है क्योंकि वानखेड़े की लाल मिट्टी की सतह पर गेंद उछाल के साथ बल्ले पर आती है, जिसका वह खासकर जल्द बल्लेबाज़ी के साथ फायदा उठा सकते हैं। बाकी केन विलियम्सन के लिए स्ट्रैटजी बनाने का कोई मतलब नहीं है। वह तकनीकी तौर पर काफी मज़बूत हैं और वह द्रविड़ की याद ताज़ा कराते हैं। टॉम लाथम के लिए अलग से स्ट्रैटजी बनाने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वह आड़े तिरछे शॉट खेलकर अपना विकेट खुद गंवा देते हैं।
टीम इंडिया के अगले दो इम्तिहान निर्णायक हैं। उसकी मौजूदा फॉर्म के मद्देनज़र उम्मीदें जगती हैं। लीग मैच में भी इस टीम ने कड़ी चुनौती रखी थी। वह तो भला हो शमी के पंजे और विराट की बड़ी पारी का जिससे मुक़ाबले पर भारत की ही गिरफ्त बनी रही। नौ मैचों की जीत जैसा ही दबदबा अगर टीम इंडिया दिखाने में सफल रही तो फिर 12 साल का सूना खत्म होते देर नहीं लगेगी।