
कुछ समय पहले तक दुनिया भर के कई आला दर्जे के ऑफ स्पिनर अपनी उंगलियों की जादूगरी से दो टीमों के बीच का बड़ा अंतर साबित हुआ करते थे मगर अब लगता है कि तमाम टीमों का इन ऑफ स्पिनरों पर ज़्यादा भरोसा नहीं रहा। तभी तो ज़्यादातर टीमों ने अपनी टीमों में या तो ऑफ स्पिनरों को शामिल ही नहीं किया और जिन्होंने किया भी, वो पार्टटाइम ऑफ स्पिनर थे। वैसे जब पांच सितम्बर को टीम इंडिया ने अपने प्रोविज़नल वर्ल्ड कप स्कवाड का ऐलान किया था तो उसमें भी कोई ऑफ स्पिनर नहीं था, मगर बाएं हाथ के स्पिनर अक्षर पटेल के अनफिट होने से रविचंद्रन अश्विन की एक तरह से लॉटरी खुल गई और वो टीम में चुन लिए गए। यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या अब तमाम टीमों का ऑफ स्पिनरों पर भरोसा नहीं रहा या फिर क्वालिटी ऑफ स्पिनर अब गायब होने लगे हैं।
आज किसी भी गैर-एशियाई टीम ने नियमित ऑफ स्पिनर को टीम में जगह नहीं दी है। इंग्लैंड के पास मोइन अली और ऑस्ट्रेलिया के पास ग्लेन मैक्सवेल और पाकिस्तान के पास इफ्तिखार अहमद और आगा सलमान जैसे पार्टटाइमर हैं। श्रीलंका के पास महीश तीक्ष्णा ज़रूर है लेकिन वह ऑफ स्पिनर कम और मिस्ट्री स्पिनर ज़्यदा हैं। कभी आप उन्हें कलाइयों के इस्तेमाल करते हुए तो कभी उंगलियों से गेंद को घुमाते हुए देख सकते हैं।
बांग्लादेश के पास मेहदी हसन और मेहदी हसन मिराज और अफगानिस्तान के पास मुजीब उर रहमान जैसे ऑफ स्पिनर मौजूद हैं। जिस तरह ऑफ स्पिनर की गेंद दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के शरीर पर आती है और उसे स्ट्रोक खेलने का पर्याप्त मौका रहता है लेकिन बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए उसकी गेंद बाहर की ओर मूव होती है जिस पर स्ट्रोक खेलना चुनौतीपूर्ण बन जाता है। वहीं यह भी सच है कि आज इंग्लैंड के पास डाविड मालान, बेन स्ट्रोक्स, सैम करन और मोइन अली बाएं हाथ के बल्लेबाज़ हैं। ऑस्ट्रेलिया के पास डेविड वॉर्नर और एलेक्स कैरी, साउथ अफ्रीका के पास क्विंटन डिकॉक और डेविड मिलर और पाकिस्तान के पास इमाम उल हक, फख्र ज़मां और साउद शकील बाएं हाथ के बल्लेबाज़ हैं। इन सबके सामने ऑफ स्पिनर कारगर साबित हो सकता है और वैसे भी अश्विन नई गेंद से भी पॉवरप्ले में गेंदबाज़ी के लिए भी जाने जाते हैं, जहां वह इन ज़्यादातर टॉप ऑर्डर के बाएं हाथ के बल्लेबाज़ों के खिलाफ असरदार साबित हो सकते हैं।
दूसरे, अब जडेजा और कुलदीप यादव के रूप में लेफ्ट आर्म स्पिनर की ऑफ से अंदर आती गेंदों को ऑफ स्पिनर के विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा है। हालांकि लेफ्ट आर्म ऑफ स्पिन जैसी टर्म क्रिकेट में नहीं है लेकिन अश्विन को जब टीम में शामिल नहीं किया गया था, तब हो सकता है कि भारतीय टीम प्रबंधन की यही सोच रही होगी। तभी तो उन्हें पिछले कई वर्षों से टीम इंडिया के वनडे क्रिकेट में स्कीम ऑफ थिंग्स का हिस्सा नहीं बनाया गया।
ऑफ स्पिनर को दरकिनार करने की एक अन्य बड़ी वजह लेग स्पिनरों के पास ज़्यादा विविधता होना है। एक अच्छा लेग स्पिनर गुगली, फ्लिपर और टॉप स्पिन से बल्लेबाज़ को परेशान कर सकता है लेकिन ऑफ स्पिनर अब एक निश्चत कोण के अंतर्गत ही `दूसरा` गेंद कर सकता है। अश्विन ज़रूर कैरम बॉल और रिवर्स कैरम बॉल से अब प्रभाव छोड़ने लगे हैं। रिवर्स कैरम गेंदें पिच होकर सीधी चली जाती हैं जो शेन वॉर्न की फ्लिपर की तरह बल्लेबाज़ के लिए एक पहेली बन जाती है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इंदौर में वॉर्नर, लैबुशेन और जोस इंग्लिस को उन्होंने ऐसी ही गेंदों पर चलता किया था।
सच तो यह है कि आज स्तर के लिहाज से वर्ल्ड कप में भाग ले रहे ऑफ स्पिनरों में अश्विन सर्वश्रेष्ठ हैं। अन्य टीमों के ऑफ स्पिनरों से किनारा करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि उनके पास अश्विन के आस-पास का भी ऑफ स्पिनर नहीं रह गया है। श्रीलंका के ऑफ स्पिनर मुथैया मुरलीधरन बेशक टेस्ट क्रिकेट में बेजोड़ थे लेकिन वानखेड़े स्टेडियम में 2011 के वर्ल्ड कप में वह न्यूज़ीलैंड के खिलाफ अनप्लेबल हो गए थे। 2007 के वर्ल्ड कप में पोर्ट ऑफ स्पेन में उन्होंने यही कमाल भारत के खिलाफ किया था।
इरापल्ली प्रसन्ना, वेंकटराघवन, शिवलाल यादव, राजेश चौहान, हरभजन सिंह से लेकर सईद अजमल, सकलैन मुश्ताक, मुथैया मुरलीधरन और नाथन लॉयन ने अपनी शानदार विविधतापूर्ण ऑफ स्पिन गेंदबाज़ी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर दिखाया था। मगर आज टी-20 क्रिकेट की अधिकता से ऑफ स्पिनर ज़्यादा प्रयोग करने से डरने लगे हैं। यहां तक कि वह फ्लाइट देने से भी परहेज करने लगे हैं जबकि वेंकट की कामयाबी का बड़ा श्रेय फ्लाइटेड गेंदें ही हुआ करती थीं।