टीम इंडिया को आम तौर पर शानदार बल्लेबाज़ी के लिए जाना जाता रहा है मगर इस वर्ल्ड कप में हम गेंदबाज़ी में सुपरपॉवर साबित हुए। आलम यह है कि ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान और इंग्लैंड की टीमें हमारे सामने 200 का आंकड़ा भी नहीं छू पाईं और अब तो लगातार दूसरे मैच में न श्रीलंका और न साउथ
अफ्रीका सौ का आंकड़ा ही छू पाई। बर्थडे बॉय विराट कोहली की यह सेंचुरी खास है और उन्होंने एक बेहद मुश्किल पिच पर वह काम करके टीम को मज़बूत स्थिति में भी पहुंचाया और महान सचिन तेंडुलकर के रिकॉर्ड की भी बराबरी की।
वर्ल्ड कप से पहले मिचेल स्टार्क, जोश हैज़लवुड, शाहीन शाह आफरीदी, ट्रेंट बोल्ट, कागिसो रबाडा और मार्को येनसेन की हर तरफ चर्चा थी मगर बुमराह, शमी और सिराज के तूफानी अंदाज़ के सामने ये सब बौने साबित होने लगे और इन्हें शानदार से सामान्य और सामान्य से अति सामान्य बनने में देर नहीं लगी। शमी को न्यूज़ीलैंड के खिलाफ उतारना टीम इंडिया के लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। उनसे पहले भी टीम जीतती थी मगर उनके आने के बाद टीम चैम्पियन की तरह जीतने लग गई। पहले तीन मैचों में 14 विकेट चटकाने
वाले शमी ने साउथ अफ्रीका के पिछले मैचों के शतकवीरों को पविलियन भेजकर अपने काम को बखूबी अंजाम दिया। उनकी सीम अंदर आई और वान डर डूसेन बाहर गए। इस वर्ल्ड कप में एक समय सबसे तेज़ सेंचुरी जड़ने वाले मार्करम तो उनकी बाहर की ओर सीम होती गेंद के साथ ही बाहर जाने के लिए मजबूर हो गए।
चार सेंचुरी बनाकर क्विंटन डिकॉक की नज़र रोहित शर्मा के एक वर्ल्ड कप में सबसे ज़्यादा पांच सेंचुरी के रिकॉर्ड पर थी लेकिन वह सिराज की कोण लेती गेंद को समझ ही नहीं पाए। सच तो यह है कि क्विंटन डिकॉक और वान डर डूसेन के आउट होने के साथ ही मैच के खत्म होने की औपचारिकता पूरी होती
दिखने लगी।
जडेजा की पहचान एक उपयोगी खिलाड़ी के रुप में आंकी जाती थीं लेकिन वह स्पिन गेंदबाज़ी में इस कदर झंडा गाढ़ देंगे, ऐसा किसी ने शायद ही सोचा होगा। ऐसा खिलाड़ी जिसकी टर्न लेती गेंदें तो खतरनाक थी ही, वहीं उनकी बहुत कम टर्न होने वाली गेंदें उससे भी ज़्यादा खतरनाक साबित हुईं। लगातार दूसरे मैच में हमारे तीन गेंदबाज़ पहले ही ओवर में विकेट चटकाते देखे गए। वहीं यह भी साबित हो गया कि साउथ अफ्रीका पहले बल्लेबाज़ी में ही अपने फन का फनकार है, बाद में उसकी बल्लेबाज़ी क्वालिटी अटैक के सामने
बिखर जाती है।