बेशक ऑस्ट्रेलिया ने तीन साल बाद विक्टोरिया में होने वाले कॉमनवेल्थ
गेम्स के आयोजन से हाथ खींच लिए हों लेकिन यह खासकर अहमदाबाद के लिए इन
खेलों की मेजबानी हासिल करने का सुनहरा मौका हो सकता है। विक्टोरिया
सरकार ने इन खेलों के आयोजन का बजट दुगना होना इसका कारण बताया है।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि भारत ने 2030 के कॉमनवेल्थ गेम्स और
2036 के ओलिम्पिक खेलों की मेजबानी के लिए अपनी दावेदारी रखी है। भारत ने
अहमदाबाद में स्टेडियमों के निर्माण और रखरखाव के लिए काम भी शुरू कर
दिया है। पिछले साल राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी करके गुजरात सरकार ने
अपनी तैयारियों और स्थानीय लोगों में खेलों के आयोजन को लेकर सक्रियता
पैदा करने की कोशिश की। हालांकि वह आयोजन सफल रहा जिससे राज्य के साथ-साथ
केंद्र सरकार की उम्मीदें भी बढ़ गईं। इसी बात के मद्देनज़र गुजरात सरकार
ने एक ऑस्ट्रेलिया की कम्पनी की सेवाएं ली हैं जो 2030 के कॉमनवेल्थ
गेम्स के लिए दावेदारी पेश करने के लिए काम करेगी और राज्य सरकार को इस
बारे में उचित फीडबैक भी देगी।
वैसे ये खेल अब कई देशों के लिए सिरदर्द साबित होने लगे हैं। 2022 के
आयोजन की मेजबानी कभी साउथ अफ्रीका को मिली थी लेकिन ढांचागत सुविधाएं
मुहैया कराने के लिए खर्च दुगने से भी बढ़ गया जिससे साउथ अफ्रीका ने हाथ
खींच लिए। तब वर्मिंघम इसके आयोजन में आगे आया। ये खेल भारत के खेलों में
बढ़ते रुतबे को भी दर्शाते हैं क्योंकि जो काम भारत ओलिम्पिक जैसे सबसे
बड़े खेल मेले में नहीं कर पाता, वह काम इन खेलों के ज़रिए हो जाता है।
अगर भारत इन खेलों की मेजबानी को लेकर आगे आता है और युद्ध स्तर पर
स्टेडियमों के निर्माण को पूरा कराता है तो उससे न सिर्फ इन खेलों का सफल
आयोजन होने से भारत की साख बनेगी बल्कि 2036 के ओलिम्पिक खेलों के लिए भी
भारत की दावेदारी को मज़बूती मिलेगी।
दरअसल, 2026 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स में 20 से ज्यादा इवेंट्स का
आयोजन होना था, जिसमें पांच हजार से अधिक एथलीट हिस्सा लेने वाले थे।
विक्टोरिया ने साफ कर दिया है कि अपने यहां स्कूलों और अस्पतालों का काम
रोककर इन खेलों का आयोजन कराने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी इसका खर्च
15 हज़ार करोड़ से बढ़कर 34 हज़ार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।