आखिर टीम इंडिया टेस्ट में क्यों नहीं भरोसा करती लेग स्पिनरों पर…टी-20 फॉर्मेट में रवि बिश्नोई रेस में आगे

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जिस देश में सुभाष गुप्ते, भागवत चंद्रशेखर, लक्ष्मण शिवरामकृष्णन, नरेंद्र हिरवानी, अनिल कुम्बले, पीयूष चावला और अमित मिश्रा जैसे धाकड़ लेगस्पिनर हुए हों, वहां टेस्ट टीम में टीम इंडिया के पास आज एक भी लेगस्पिनर न होना चिंता की बात है। यहां सवाल यह भी है कि क्या टीम इंडिया को युजुवेंद्र चहल, राहुल चाहर, वरुण चक्रवर्ती और रवि बिश्नोई पर लम्बे फॉर्मेट में भरोसा नहीं है।

दरअसल आज टेस्ट में टीम इंडिया को ऐसे स्पिनर चाहिए जो बल्लेबाज़ी भी कर सकते हों। रविचंद्रन अश्विन, रवींद्र जडेजा और अक्षर पटेल इसका बड़ा उदाहरण है क्योंकि इनके अलावा अन्य स्पिनरों पर आज टेस्ट क्रिकेट के लिए विचार भी नहीं होता। रही बात लेग स्पिनर की, आईपीएल में तमाम टीमें एक या दो लेगस्पिनरों को प्लेइंग इलेवन में जगह देती हैं लेकिन अब टीम इंडिया भी खासकर व्हाइट बॉल क्रिकेट में इसके महत्व को समझने लगी है। खासकर सबसे छोटे फॉर्मेट में अब रवि बिश्नोई जिस तरह उभरे हैं, उसे देखते हुए ज़ाहिर है कि अगले टी-20 वर्ल्ड कप में टीम में तीसरे स्पिनर को जगह को लेकर उनकी टक्कर युजुवेंद्र चहल से होगी, जहां आज वह इस रेस में चहल से कहीं ऊपर दिखाई दे रहे हैं।

रवि बिश्नोई ने जिस तरह ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पॉवरप्ले में अपनी दिलेरी दिखाई है, उससे उनका पलड़ा ट-20 क्रिकेट में चहल से कहीं ऊपर दिख रहा है। आखिरी टी-20 में उनका ट्रेविस हैड पर छक्का खाने के बाद अगली गेंद पर तेज़ गेंद से उन्हें फंसाना यादगार घटना रही। ऐसे ही गति परिवर्तनों और गुगली से उन्हें इस सीरीज़ में नौ विकेट हासिल हुए। पॉवरप्ले में चहल पर कभी किसी कप्तान ने भरोसा नहीं किया। ज़ाहिर है कि इस मामले में रवि बिश्नोई अश्विन की पॉवरप्ले में गेंदबाज़ी की कमी की भरपाई कर सकते हैं।

चहल हवा में काफी धीमी गेंदबाज़ी करके बल्लेबाज़ को ग़लती करने के लिए जाने जाते हैं। बीच-बीच में फ्लाइट का भी वह इस्तेमाल करते हैं जबकि रवि बिश्नोई फ्लैट ट्रैजक्टरी की गेंदों पर भरोसा करते हैं। बाकी स्पिनरों से उनकी गेंदबाज़ी की रफ्तार तेज़ होती है। उनकी लेग स्पिन कम टर्न होती है जबकि गुगली में वह एंगल का इस्तेमाल करके बल्लेबाज़ को छकाते हैं। फ्लाइट और गेंद के डिप होने में वह ज़्यादा विश्वास नहीं रखते।

दोनों में एक बड़ा फर्क यह भी है कि चहल जहां ऑफ स्टम्प से दूर लेग से गेंद को ज़्यादा टर्न कराते हैं तो वहीं रवि यही काम लेंग्थ से करते हैं। उनका एक्शन काफी अलग है। जहां दोनों हाथ उनके ऊपर की ओर उठते हैं और पिछले हाथ से वह गेंद को रिलीज़ करते हैं। गुडलेंग्थ पर लगातार हिट करने और गुगली के जाल में फंसाने पर उनका ध्यान रहता है।

चहल के पास लम्बा अनुभव है। गेंद को रवि की तुलना में ज़्यादा टर्न कराने की क्षमता है। वह भी विकेट लेने में ज्यादा विश्वास करते हैं लेकिन उनके लिए अब स्थितियां काफी चुनौतीपूर्ण हो गई हैं। टी-20 वर्ल्ड कप में सेलेक्टर्स ने उनसे ज़्यादा वरुण चक्रवर्ती और राहुल चाहर पर भरोसा किया। अब उनके नाम पर सेलेकटर्स तभी विचार कर सकते हैं जब रवि बिश्नोई साउथ अफ्रीका और अफगानिस्तान के खिलाफ होने वाली वनडे सीरीज़ में खराब प्रदर्शन करें। इन दोनों में बेशक स्थिति पूरी तरह साफ न हो लेकिन इतना तय है कि इनमें से एक स्पिनर जडेजा और कुलदीप यादव के साथ टी-20 वर्ल्ड कप में तीसरे स्पिनर की भूमिका में होगा। अक्षर के शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद उन्हें साउथ अफ्रीकी दौरे में टी-20 में न चुने जाने से तय है कि सेलेक्टर्स जडेजा पर ही ज़्यादा भरोसा कर रहे हैं।

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