इस इंग्लैंड टीम में 2012 जैसे करिश्माई मोंटी पनेसर और ग्रीम स्वान नहीं हैं।
“मेरा ही नहीं बल्कि विराट और पुजारा का भी औसत पिछले कुछ वर्षों में घरेलू जमीं पर कम हुआ है। इसका मतलब यह नहीं कि हमारी तकनीकी में कमी हैं या हम अब स्पिनरों के सामने बार-बार एक गलती दोहरा रहे हैं बल्कि इन भारतीय पिचों पर टिकना और फिर रन बनाना बहुत मुश्किल हो गया है” अजिंक्य रहाणे ने दिसंबर 2022 में ऐसा बोला था।
भारत 2012 के बाद घरेलू जमीं पर सीरीज नहीं हारा है। भारत की अजेय बढ़त का बड़ा कारण स्पिन गेंदबाज रहें हैं। खासकर अश्विन और जडेजा की जोड़ी ने विदेशी बल्लेबाजों को खूब छकाया है। विदेशी टीमें और मीडिया सवाल भी उठाता रहा है कि भारत अपने घर में बल्लेबाजों के लिए मुफीद पिचें नहीं बनाता है। भारत ऐसी ही विकेट तैयार करता है जिसमें स्पिनर तुरंत अपना प्रभाव छोड़ने लगते हैं और गेंद इतना ज्यादा घूमता है कि टिकना भी मुश्किल हो जाता है।
भारतीय बल्लेबाजों को हुई है परेशानी
भारत की यह योजना पिछले कुछ वर्षो में उस पर भारी पड़ती दिखीं है। पिछले साल आस्ट्रेलिया के खिलाफ दिल्ली टेस्ट में रोहित शर्मा की टीम पहले पारी में 262 में ऑलआउट हो गई। ऑस्ट्रेलिया ने पहले मैच से बेहतर खेल दिखाते हुए पहली पारी में 263 तो बनाए लेकिन दूसरी पारी कोटला की घूमती पिच पर मात्र 113 पर सिमट गई। तीसरा मैच इंदौर में खेला गया जिसमें भारत पहली पारी में 109 और दूसरी में 163 रन ही बना सका। जवाब में ऑस्ट्रेलिया ने मैच जीत लिया।बांग्लादेश दौरे पर स्पिनरों के सामने भारतीय बल्लेबाजों की कलई खुल गई थी। 2022 में ढ़ाका टेस्ट में 145 चेज करने में भारत ने सात विकेट खो दिए थे। इस मैच ने यह इशारा भी किया कि भारतीय खिलाड़ी जिनको स्पिन गेंदबाजों का महारथी माना जाता है गेंद घूमने पर वह भी धाराशाई हो सकते हैं। यह पहली बार नहीं था इससे पहले भी 2017 में पुणे टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया मेजबान पर भारी पड़ा था। गेंद अगर टर्न होती हैं और सामने वाली टीम में अश्विन और जडेजा जैसा ही क्वालिटी वाले स्पिनर मौजूद हैं तो भारत दबाव में आ सकता है। 2012 वाली इंग्लैंड ने सीरीज जीती थी जिसका एक बड़ा कारण स्वान और पनेसर की खतरनाक जोड़ी थी जिसने सचिन, सहवाग, लक्ष्मण और विराट जैसे धुरधंरों को फीका कर दिया। फिलहाल, इस टीम में पुजारा और रहाणे नहीं है और विराट कोहली के पहले दो टेस्ट मैच से बाहर होने के बाद मिडिल ऑर्डर में अनुभव की कमी है।
ऐसी उम्मीद है कि 25 जनवरी से शुरू हो रही सीरीज में भी स्पिन मददगार विकेट ही मिलने वाले हैं। भारत ने अपने खेमे में अश्विन, जडेजा और अक्षर के अलावा कुलदीप यादव को भी जगह दी है जिससे यहीं आसार नज़र आ रहें हैं कि पूरी सीरीज में स्पिनरों का ही बोलबाला होने वाला है। ऐसी स्थिति में इंग्लैंड के गेंदबाज भी भारत को परेशान करते हैं और पिच से मदद निकाल पाते हैं तो अनुभवहीन मिडिल ऑर्डर भारत की कमजोरी बन सकता है। केेएल राहुल को छोड़ दें तो शुभमन गिल का टेस्ट फॉर्म बेहद निराशाजनक रहा है वहीं अय्यर भी साउथ अफ्रीका दौरे पर बुरी तरह फ्लॉप रहे थे। गेंद टर्न होने पर पिच टिकना मुश्किल हो जाता है और इसी को देखते हुए अय्यर से आक्रामक बल्लेबाजी के लिए भी कहा गया है ताकि वह जब तक विकेट में मौजूद रहे, रन बनाते रहें। भारतीय जमीं पर पिछले कुछ वर्षो में जो भी मैच कम स्कोर वाले रहे है उनमें एक पैटर्न दिखा है कि जीतने वाली टीम की तरफ से सिर्फ एक बल्लेबाज ने बड़ी पारी खेली है और मुश्किल विकेट पर वही एक पारी रनों के दृष्टिकोण से जीत और हार के बीच अंतर भी रहा है।
बैजबॉल हो सकता है प्रभावी
स्पिन मददगार विकेट भारत के लिए इंग्लैंड के गेंदबाजी खेमे को देखते हुए अभी भी मैच जीत की पटकथा लिख सकते है लेकिन हाल फिलहाल भारतीय बल्लेबाजी का संघर्ष यह भी इशारा करता है कि यह दो धारी तलवार साबित हो सकता है। इंग्लैंड ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह अपनी आक्रामक बैजबॉल शैली से पीछे नहीं हटने वाले हैं। क्रिकेट पंडितों का यह भी मानना है कि बैजबॉल भारत में टॉय टॉय फिस्स हो जाएगा लेकिन 2012 दौरे में केविन पीटरसन की वानखेड़े की लाल मिट्टी पर आक्रामक 186 रनों की पारी रहस्य बन चुकी भारतीय जमीं की फतह उन्हें आशा जरूर दे सकती हैं कि हल कहीं काउंटर अटैक में न छिपा हो।