सही ट्रैक पर है नीरज चोपड़ा की तैयारियां, वर्ल्ड चैम्पियनशिप में बन सकते हैं इतिहास पुरुष

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बेशक आज दुनिया भर में कई खिलाड़ी 90 मीटर से ज़्यादा जैवलिन फेंक रहे हों और हमारे ओलिम्पिक चैम्पियन नीरज चोपड़ा अभी तक इस लक्ष्य तक न पहुंचे हों लेकिन वहीं यह भी सच है कि नीरज की तैयारियां इस समय सही ट्रैक पर हैं। उन्होंने ओलिम्पिक गोल्ड के प्रदर्शन को अब काफी पीछे छोड़ दिया है और महीने भर में दूसरी बार वह अपने नैशनल रिकॉर्ड में सुधार करने में सफल रहे हैं। जिस डायमंड लीग में वह पिछले कई प्रयासों में एक भी पदक नहीं जीत पाए थे, उन पदकों के सूनेपन को भी उन्होंने पिछले दिनों स्टॉकहोम में सिल्वर मेडल जीतकर दूर कर दिया।

पहले फिनलैंड में पावो नूरमी खेलों में उन्होंने अपने पर्सनल बेस्ट (89.30 मी.) के साथ नैशनल रिकॉर्ड में  सुधार किया और सिल्वर मेडल जीतकर अपने तमाम प्रतियोगियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी और फिर उन्होंने स्टॉकहोम में वह काम कर दिया जो वह अपने पिछले कई प्रयासों में भी नहीं कर पाए थे। इस बार डायमंड लीग में उन्होंने पहली बार 89.94 मीटर के प्रदर्शन के साथ सिल्वर हासिल किया और वह अपने 90 मीटर के बैरियर को छूने के लक्ष्य से केवल छह सेंटीमीटर ही पीछे रहे।

यह सब ऐसे समय में हुआ जबकि उन्होंने अन्य प्रतियोगियों की तुलना में काफी देरी से अपनी ट्रेनिंग शुरू की और इसी वजह से उनका वजन भी 13 से 14 किलो वजन बढ़ चुका था। उस समय उनके लिए फिटनेस  सुधारना मेडल की रेस से भी बढ़कर था, जिसमें उन्होंने दिन रात काम किया। उनका ट्रेनिंग का बेस भी लगातार बदलता रहा। पावो नूरमी खेलों से पहले वह अपनी पुरानी और पसंदीदा जगह फिनलैंड में प्रैक्टिस कर रहे थे। फिर उन्होंने डायमंड लीग के पिछले पड़ाव के लिए अपना बेस स्टॉकहोम से 70 किलोमीटर दूर उप्साला में बनाया। अब उनकी नज़रें तीन बिंदुओं पर टिकी हैं। सबसे पहले अमेरिका के शहर एंजेन ओरगन में होने वाली वर्ल्ड चैम्पियनशिप है। फिर 28 जुलाई से बर्मिंघम में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स हैं और फिर छह अगस्त से आठ सितम्बर तक होने वाली पांच डायमंड लीग की प्रतियोगिताएं हैं जो उनकी आगे की तैयारियों के लिए काफी काम आ सकती है। वैसे कॉमनवेल्थ गेम्स में अपनी इवेंट के दो दिन बाद ही मोनाको में डायमंड लीग का उनका अगला पड़ाव है। इसमें भाग लेने को लेकर उन्होंने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। जर्मन कोच क्लॉज़ बार्तोनित्ज़ पर वह काफी भरोसा करते हैं जो उनकी तकनीक पर काम कर रहे हैं।

वैसे नीरज का पूरा ज़ोर पहली दो थ्रो पर रहता है जिसमें वह अपनी पूरी ऊर्जा झोंक देते हैं। ज़ाहिर है कि इसके लिए वह कड़ी ट्रेनिंग में पहले से वार्म अप होकर आते हैं। हालांकि उनकी इस सोच में इंजरी का खतरा ज़्यादा रहता है क्योंकि बाकी एथलीट धीरे धीरे लय में आकर कई बार अपनी पांचवीं या छठी थ्रो में भी बाज़ी मार लेते हैं। मगर ऐसा नीरज के साथ नहीं है। ओलिम्पिक से पहले उनकी कई थ्रो रेंज से बाहर चली जाती थी जिसमें उनकी ऊर्जा का काफी अपव्यय होता था। मगर अब उन्होंने इस समस्या से निजात पा ली है। अब एंगल पर ध्यान देना और इंजरी से बचना उनकी प्राथमिकता है। वह आज भारतीय खेल इतिहास के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने एशियाई खेलों और कॉमनवेल्थ गेम्स के गोल्ड जीतने के अलावा ओलिम्पिक का गोल्ड भी अपने नाम किया है। अब ओलिम्पिक में गोल्ड और डायमंड लीग में पहली बार पदक जीतने के बाद उनका कॉन्फिडेंस इस कदर बढ़ गया है कि उनकी नजर अब 113 साल पुराने रिकॉर्ड पर टिक गई है।

रिकॉर्ड यह है कि 2009 में नार्वे के आंद्रेस तोरकिल्डसन के बाद विश्व स्तर पर कोई भी ऐसा खिलाड़ी नहीं हुआ जिसने ओलिम्पिक और वर्ल्ड चैम्पियनशिप में गोल्ड जीते हों। मगर यह काम इतना आसान नहीं है। ग्रेनाडा के एंडरसन पीटर्स ने स्टॉकहोम में डायमंड लीग में 90.31 मीटर के साथ नीरज को हराया था। टोक्यो ओलिम्पिक में नीरज से हारकर दूसरे स्थान पर रहने वाले चेक रिपब्लिक के जाकूब वाल्डिच ने इस साल मई में दोहा डायमंड लीग में 90.88 मीटर का शानदार प्रदर्शन किया। इसी तरह फिनलैंड के ओलिवर हेलांदर नुरमी गेम्स में 89.83 मीटर के साथ नीरज से बेहतर प्रदर्शन करने में सफल रहे थे। इसके अलावा नीदरलैंड में आयोजित एफबीके गेम्स में जर्मनी के जूलियन वैबर और केशोर्न वॉलकाट 89 मीटर से अधिक का प्रदर्शन करके नीरज के लिए कड़ी चुनौती रख सकते हैं। अब सबकी नज़रे पहले वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप पर हैं जहां उन्हें 113 साल पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने का अवसर है और फिर उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में अपने खिताब की रक्षा करनी है।

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