जिस टीम ने बैजबॉल अंदाज़ में न्यूज़ीलैंड और पाकिस्तान का क्लीन स्वीप किया हो। साउथ अफ्रीका से सीरीज़ जीती हो।भारत को अपने यहां आयोजित सीरीज़ के बचे हुए टेस्ट में हराया हो और ऑस्ट्रेलिया जैसी शक्तिशाली टीम से सीरीज़ बराबर खेली हो, उसे अब तक के सबसे बड़ा अंतर से हराना वास्तव में अद्भुत है।
विशाखापट्टनम में हम कुछ खिलाड़ियों के शानदार व्यक्तिगत प्रदर्शन से जीते थे लेकिन यहां टीम का परफैक्ट टीम वर्क दिखा, जहां यशस्वी जायसवाल की डबल सेंचुरी, रोहित और जडेजा की सेंचुरी के साथ टीम को संकट से उबारना, शुभमन गिल की 90 प्लस की पारी, सरफराज़ का अपने पहले ही टेस्ट की दोनों पारियों में हाफ सेंचुरी बनाना, सिराज और कुलदीप का पहली पारी के पुछल्ला बल्लेबाज़ों को निपटाना और बुमराह का दोनों पारियों में सबसे किफायती गेंदबाज़ी से दबाव बनाना हो। इस टीम वर्क ने भारत को अब तक की सबसे बड़ी जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई।
यहां अंग्रेज विकेट को दोष नहीं दे सकते क्योंकि मैच के चौथे दिन अगर भारत यशस्वी और सरफराज की पारियों की बदौलत पांच रन प्रति पारी की रफ्तार से रन बनाता है तो वहीं इंग्लैंड न सिर्फ 122 रनों पर ढेर हो जाता है बल्कि 40 में से 12 ओवर मेडन खेलने के लिए भी मजबूर हो जाता है। कहां गया उनका बैज़बॉल, जिस पर अंग्रेज़ों को बहुत गुमान था। भारत ने बैज़बॉल का जवाब जायसबॉल से दिया।
जो रूट और जॉनी बेयरस्टो को भी अच्छी तरह से समझ आ गया होगा कि भारत में स्पिनरों का सामना करने के लिए स्वीप और रिवर्स स्वीप शॉट ही काफी नहीं हैं। इसके लिए सूझबूझ से बल्लेबाज़ी करने की ज़रूरत होती है, जो भारतीय
बल्लेबाज़ों ने की। इसी तरह ओली पोप और बेन फोक्स ने भी लगता है कि जडेजा के सामने कट शॉट को कुछ ज़्यादा ही आसान समझने की ग़लती कर दी थी। इतना ही नहीं, कुलदीप की फ्लाइट पर गेंद के पिच होकर दिशा बदलने का भी अंग्रेज पूर्वानुमान नहीं लगा पाए।
बैज़बॉल दौर में इंग्लैंड पर पहली बार सीरीज़ की हार का खतरा मंडरा रहा है। अगला मैच रांची में 23 फरवरी से है, जहां टीम इंडिया इसी क्रम को बरकरार रखकर न सिर्फ सीरीज़ अपने नाम करने के इरादे से उतरेगी बल्कि इंग्लैंड को बैज़बॉल दौर में पहली बार सीरीज़ की हार के लिए भी मजबूर करेगी।