सबा करीम
इंग्लैंड के खिलाफ वनडे सीरीज के पहले मैच में जिस आत्मविश्वास के साथ
भारतीय टीम मैदान पर उतरी थी उस तरह का आत्मविश्वास खिलाड़ियों में सीरीज
के दूसरे मैच में बिल्कुल भी नज़र नहीं आया। जितनी बड़ी जीत भारतीय टीम
ने सीरीज के पहले मैच में हासिल की, उससे बड़ी हार उसे दूसरे मुकाबले में
झेलनी पड़ी और यह वाकई चिंता का विषय है क्योंकि भारत सिर्फ 247 रनों का
लक्ष्य ही चेज़ कर रहा था और जिस लय में भारत के बल्लेबाज हैं उसके बाद
सौ रन के बड़े अंतर से हारना काफी निराश करता है।
इसमें कोई शक नहीं कि भारत की इस हार की वजह बल्लेबाजों की जल्दबाजी रही
क्योंकि जिस तरह भारत के टॉप ऑर्डर के बल्लेबाज शुरुआती पॉवरप्ले में तेज
रन बनाने के लिए गए जिसकी वजह से भारत के एक के बाद एक विकेट गिरते चले
गए। मेरे ख्याल से भारतीय टीम को शुरुआती दस ओवरों तक संभल कर खेलना
चाहिए था क्योंकि 50 ओवरों का यह खेल था और लक्ष्य भी काफी बड़ा नहीं था
लेकिन टीम की सोच इसके विपरीत नजर आई। बहरहाल भारतीय टीम को यह ध्यान में
रखना चाहिए कि इस वक्त इंग्लैंड की टीम अपने प्रमुख गेंदबाजों के बिना
खेल रही है। जहां इंग्लैंड के पास वर्तमान समय में न ही जोफ्रा आर्चर हैं
और न ही मार्क वुड हैं लेकिन इसके बावजूद भारतीय टीम की बल्लेबाज़ी का इस
तरह से बिखरना काफी निराश करता है।
भारतीय बल्लेबाजी में मुख्य तौर पर विराट कोहली का प्रदर्शन काफी चिंता
बढ़ाता है क्योंकि वह एक अनुभवी बल्लेबाज हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें
ज्यादातर मैचों में एक ही तरह से आउट होते देखा जा रहा है और अब तो उनके
सामने गेंदबाजों ने भी एक ही तरह की प्लानिंग के साथ गेंदबाजी करनी शुरू
कर दी है। जिस तरह विराट के सामने गेंदबाज पहले कुछ गेंद एक दम आगे रखते
हैं, जिससे वह ड्राइव लगा सके और ऐसे में जब कोई बल्लेबाज ड्राइव लगाता
है तो उसका आत्मविश्वास खुद ब खुद बढ़ जाता है। यही कुछ कोहली के साथ
देखने को मिलत रहा है जिस तरह वह कुछ बाउंड्री लगाने के बाद बाहर वाली
गेंदो को भी छेड़ना शुरू कर देते हैं जिसका फायदा विपक्षी टीम के गेंदबाज
उठा लेते हैं। यहां उन्हें इस बारे में थोड़ी सोच बदलने की ज़रूरत है।
(लेखक पूर्व भारतीय विकेटकीपर होने के अलावा राष्ट्रीय चयनकर्ता रह चुके हैं)